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(४५९) कोवेला गज घोडला चामर छत्रनी छाय ॥ कोवेला पगें चालवू ताती वेलुमाय ॥ २८॥ कृपण धन संचय करे अभण बेशे राज ॥ माखी मधने संग्रहे ए सहु परने काज ॥ २९॥ कडवी होय लींबडी मीठी तेहनी छाय॥ बांधव होय अबोलडा तोय पोतानी बांय ॥ ३० ॥ कपटीके मन कपट बशे सूरा मन संग्राम ॥ लोभीके मन धन बशे कबीरके मन राम ॥ ३१ ॥ कांचन तजवो सहेल है सहेल प्रियाको नेह ॥ ईर्ष्या निंदा परतणी कठीन त्यागवी तेह ॥ ३२॥ कुंजर मुखशे कण गिरे खूटे नहि तस आहार ॥ कीडी सो कण ले चली तृप्त हूओ परिवार ॥ ३३ ।। करज करी धन वावरे फूलाव्यो फूलाय ॥ वलतो विमासण करे ए मूरखनो राय ॥ ३४ ॥ करे अकारज आपनुं थाय कुमति जे वार ॥ हाथ चढयु हथीआर ते मारे पगे ममार ॥ ३५॥ काजल तजे न श्यामता सज्जन तजे न हेत ॥ दुर्जन तजे न कुटिलता ए जाणो शंकेत ॥ ३६ ॥