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________________ {r} सरितः सिकता बिंदू - नव्धव्योम्नि च तारकाः ॥ संख्यातुमीशते दक्षा न दोषान्योषितां पुनः ॥६॥ भावार्थ —केटलाक दक्ष जनो नदीओनी रेती (वेळ), समुद्रना बिंदुओ अने आकाशमा तारा मापी शकशे, परंतु स्त्रीओना दोषोनी गणत्री करवाने कोई समर्थ नथी. ६ समानयोनी वनवृक्षवासिनौ सितच्छवी व्योमगती उभावपि । तथापि दुर्वागिति निंदितो जनैर्द्विकः पिकस्तु प्रियवागिति स्तुतः ॥ ७॥ भावार्थ - समानं योनि, एक वनमा एकज वृक्षमां वसनार, श्याम, आकाशगामी ए रीते बने समान छतां दुर्वचनना योंगे काग निंदा पामे छे अने प्रिय वचनना योगे कोयल प्रशंसा पामे छे. ७ सद्भावो नास्ति वेश्यायां स्थिरता नास्ति संपदाम विवेको नास्ति मूर्खाणां विनाशो नास्ति कर्मणाम् भावार्थ — वेश्याओमां सद्भाव होतो नथी, संपत्ति
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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