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( ११४) पोतानी जळधाराथी धरणीपर शा माटे सिंचन करे करे छे, अने आ दिवाकर-सूर्य, आकाशमां भमी म. मीने त्रणे लोकने शा माटे आनंद पमाडे छे ? माटे परोपकार करवामां साधुजनो (सज्जनो)नुं मन, उपाधिनी अपेक्षा करतुं नथी. ६७
किं कूर्मस्य भरव्यथा न वपुषि मां न क्षिपत्येष यत्कि वा नास्ति परिश्रमो दिनपतेरास्ते न यन्निश्चलः । किं चांगीकृतमुत्सृजन हि मनसा श्लाघ्यो जनो लजते निर्वाहः प्रतिप्रन्नवस्तुषु सतातद्धि गोत्रव्रतम् ॥ ६८ ॥
भावार्थ-शुं काचबाने भारनी पीडा थती नहि होय, के जे पृथ्वीने मूकी देतो नथी, शुं सूर्यने परिश्रम नहि थतो होय, के जे निश्चय थईने बेसी रहेतो नथी, कारण के उत्तम जन, अंगीकार करेलनो त्याग करतां मनमां लज्जित थाय छे. वळी अंगीकृतनो निर्वाह करवो-ए तो प्रधान पुरुषोनु कुळक्रमागत व्रत छे. ६८