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________________ ( ११५) कुटिला लक्ष्मीर्यत्र प्रभवति न सरस्वती वसति तत्र । प्रायः श्वश्रूनुषयोर्न दृश्यते सौहृदं लोके६९ भावार्थ-ज्यां कुटिल लक्ष्मीनो निवास छे, त्यां सरस्वती आवीने वास करती नथी. कारण के जगतमां तपास करतां प्रायः सासु-वहुनी मित्राई जोवामां आवती नथी. ६९ करान्प्रसार्य रविणा दक्षिणाशावलंबिना। न केवलमनेनात्मा दिवसोऽपि लघूकृतः ॥७॥ ___ भावार्थ-दक्षिण आशा (दिशा)नु अवलंबन करनार सूर्ये पोताना कर (किरणो) पसारीने तेणे मात्र पोतानीज लघुता करी छे, तेम नथी, परंतु तेणे दिवसने पण लघु (टुंको ) बनावी दीधो छे. ७० कथं नाम न सेव्यते यत्नतः परमेश्वराः। । अचिरेणैव ये तुष्टाः पूरयति मनोरथान्॥ ७१॥ भावार्थ-परमात्मानी यत्नपूर्वक शा माटे सेवा न करवी ? कारण के अल्प समयमांज संतुष्ट थतां जेओ मनना मनोरथ पूरण करे छे. ७१
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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