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________________ कुमारविहा रसत्कम् ।। ॥३७॥ समर्थ थाय ने." आ प्रमाणे सूर्य जे चैत्यना प्रांगणानी नूमिमां प्रतिबिंबित थइने प्रनुनी प्रार्थना करे .' ३५ . _ विशेषार्थ ते कुमारविहार चैत्यनी आंगणानी नूमिमां सूर्य, प्रतिविंब पमे छे, ते उपर कवि नत्प्रेक्षा करे . ते सूर्य प्रतुने विनंति करे ने के, " हे स्वामी, हुं मारा किरणरूपी चरणथी हमेशां तमारा मंदिरनां शिखरनो स्पर्श करुं बु. तेम वळी तमारा चैत्यनी अंदर रहेला सूर्यकांतमणिमांथी मारा स्पर्शने लक्ष्ने तणखा नोकळे , तेथी अंदर दर्शन करवा आवेला सोकोने त्रास आपुं छं. ए मारा अपराधोने आप क्षमा करो छो. कारण के आप विश्वजनना बंधु गे.” आ नपरथी ते चैत्यना आगणामां सूर्यनुं प्रतिबिंब पसे तेवा मणिो ने अने अंदरना नागमा सूर्यकांतमणिो जमेला जे, ए वात सिह थाय . ३५
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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