SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नावार्थ - सर्व स्थळे रहेला अति निर्मळ स्फाटिक मणिना पाषा: गोनी अंदर पुष्पा बलि साथ रहेला पोतानाज शरीरने जोइ संघट्टयवाना' (जी थवाना) कष्टथी जय पामी राह जोइ उज्मा रहेला मुग्ध बोको ते चैमध्यमां चिरकाले प्रवेश करे बे. २० विशेषार्थ - ते चैत्यनी अंदर पुष्पना बलिने बइ पूजा करवा आवे आ मुग्ध बोको, पोताना शरीरने अति निर्मल एवा स्फाटिक मणिमां प्रतिबिंबित rai जो यो मुग्धपणाने लइने एम समजे बे के, अहिं लोकोनी जीम घणी बे, तेथी जयपामी तेओ जीम दूर थवानी राह जोइ उजा रहे अने ते कारणथी तेयो घणीवारे चैत्यनी अंदर दाखल थाय ने उपरथी एम दर्शाव्युं छे के, ते चैत्यमां निर्मल स्फाटिकमणि जड्या हता नेत्यां जिन पूजा करवाने घणा लोको आवता हता. २०
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy