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कुमारविहान रशतकम्।। ॥७॥
उत्पन्न करे , एवा मंगळोना स्थानरूप अने सुखमय अमृतना निरवधि समुज एवा देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ प्रतु तमने चिरकाल शाश्वत लक्ष्मी [ मोकादमी ] ने आपो. ५ - विशेषार्थ-आ श्लोकमां श्री पार्श्वनाथ प्रजुना शरीरनी कांतिनुं वर्णन करी मोकलक्ष्मीनी प्राप्ति रूप आशीर्वचननो उद्गार करवामां आव्यो. श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी श्वेतकांति नपर ग्रंयकार नत्प्रेक्षा करे . श्री पार्श्वनाथ प्रनुनी कांति मोलरना पुष्प जे घणांज श्वेत , तेना गर्वने नाश करे . तेवी श्वेत कांति श्वेतकांतिवाळा प्रनुनी साये रहेला सर्पनी रसनानो योग पामेली बे, तेथी ए कांतिनी झाइ एवी प्रसरे ने के, ते जोइ जगत्ना लोकोने जाणे प्रतु उपर कीरनी धारा थती होय, एवी शंका उत्पन्न करावे . आवा श्री पार्श्वनाथ प्रभु मोकलदमी आपवाने समर्थ जे. जे मोहबझीने आपवाने स.