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________________ अने मस्तक उपर अंबर ( आकाश पक्षे वस्त्र) ने प्राप्त करनारा दंथी जेनुं शरीर व्याप्त थयेधुं एवो पूर्णिमानो चंछ मोतीओना हारना गुच्छोथी वि. षम अने जंचा विस्तारवाला प्रांत नागनी अणिओवासा श्वेत उत्रनी पूर्ण शोनाने पामे . ॥ १०॥ विशेषार्य-आ श्लोकयी कवि चंने उत्रनी साथे सरखावे छे. ते जंचा चैत्य नपर आवेशो चं उत्रनी पूर्ण सक्षमीने-शोलाने प्राप्त करे . उत्रनी नीचे दंग होय छे, तेम चंपनी नीचे ते चैत्यनो चंचो ध्वजदंग . उंचे रहेला चंझे नक्षत्र-तारा मंझनने व्याप्त करेला , अने तेना मस्तक नपर आकाश आवेई . आयी मोतीओना हारना गुच्छवासा उत्रदंमना जेवो देखाव लागे छे. अहिं अंबर शब्दना बे अर्थ थाय . ध्वज दंडना मस्तक नपर अंबर-आकाश आवेवं चे अने अंबर-वस्त्र पण आवेवं .
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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