________________
ली तेमनी अंदर पण तेवाज चित्रनी घटना थइ जाय बे. ९३
विशेषार्थ - ग्रंथकार हवे ते चैत्यनी चित्रशालानुं वर्णन करे बे. ते चैत्यनी अंदर आवेली चित्रशालाओ मां को जींत उपर चित्रकारोए पोतानी कारीगरीथी कोइ एवां सुंदर चित्रो रचेलां बे के जे तेवां चित्रो बीजी नींतो उपर थइ शक्यां नथी, परंतु रत्नमय शिलाओना संगने लइने तेमनी कांतिमां पेली सुंदर चित्रवाली जीतनुं प्रतिबिंब पमे बे, तेथी बीजी जीतोनी अंदर पण तेवीज चित्रघटना देखाय बे. ९३ भांकारपूरप्रणय मुकुरितो घोरघोरैः प्रसर्पन् घंटाटंकारघोषैः प्रतिनदितघनैलमितो मांसलत्वम् । उमापूर्य तूर्यध्वनिरनवरतं स्मारयन् तार्क्ष्यपक्ष
-