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________________ कुमार विहा रशतकम् ।। || 00 || चमसाचडसीथी' वासनाव मे क्रमने तोमी थता एवा देवीयोना मंगल घोषयी अमृत वर्षावनारा श्रुति - श्रवणगृहमां परस्पर एकबीजाना उंचा गायननी तफावत नमी जवाथी किंनरनी स्त्रीयो देवीओ उपर भारे रोष करी तेमना गायनने व्यर्थ करती हती ने देवी किंनरनी स्त्रीओ उपर जारे रोष करी मना गायनने व्यर्थ करती हती. ८४ विशेषार्थ - कुमार विहार चैत्यनी अंदर आवेला संगीतगृहमां किंननत्र गीतध्वनि ने देवीओ मंगलध्वनि करवा आवे छे. ते वखते तेमनी बच्चे ' हुं पहेली गाउं, हुं पहेली गाउँ' एवी चमसाचसी श्रवाथी तेपरस्पर एटलावा ध्वनियों करे वे के, तेमनी बच्चे रागनी उच्चतानो त. फावत जातो नथी, तेथी किंनरनी स्त्रीओ देवीओ तरफ मोटो रोष करी तेमना मंगलगीतने व्यर्थ करे बे ने देवीओ किंन्नरनी स्त्रीओनीपर रोष
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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