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________________ दंड कूप स्थंन (मोल) नीतुट्यताने प्राप्त करे ने अने मस्तक नपर आवेझो कलश खलासीनी जेम प्रत्येक दिशामां सुंदर कांतिरुपा दृष्टिने विस्तारे . स्फटिकमणिनी शिवाओना समूहनी कांतिनो समुफ सर्वत्र लावण्यमय बनी रह्यो जे अने पोते असंख्य रत्नोथी परिपूर्ण ने. ६३ विशेषार्थ-या श्लोकयी कवि कुमारविहार प्रासादने वाहाणनी नपमा आपे . वाहाणमां जेम जंचो मोन होय , तेम अहिं सफेत पताकावासो सुवर्णनो ध्वजदंग रे. वाहाण नपर अग्रत्नागे खनासी बेसे ने अने ते पोतानी दृष्टि सर्व दिशाओमां विस्तारे , तेम आ प्रासाद उपर कलश प्रत्येक दिशामां पोतानी कांतिरुपी दृष्टिने विस्तारे .वाहाणमांजेम समुजना अनेक रत्नो नरेला होय , तेम आ प्रासाद अनेक रत्नोथी परिपूर्ण ने. अने तेनी अंदर स्फाटिकमणिनी शिलाओनी कांतिनो समूह रहेबो . आवी
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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