________________
कुमारविहारशतकम्।। ॥ ७॥
येला नमराोना जासवाला इंघोना मस्तकोना शेखर-मुगटमाथी खरीपमेसा पुष्पमालाना समूहोथी पूजाएला तमारा चरणकमलने जोवानी हुँ नित्ये इच्ग राखुं छु, परंतु, आ मारो वैरी मृग तमारा जज पीठ नपर बेठेला सिंहनी प्रतिमाथी त्रास पामे . ५४
विशेषार्थ-ते चैत्यनी कारवेदिकामां पमेला चंजना प्रतिबिंब उपर ग्रंथकार कल्पना करे ने के, चंछ प्रजुनी पासे आवीने प्रार्थना करे ने के, " हे नाथ नित्ये तमारा चरणकमलने जोवानी मारी इच्छा , पण हुं शुं कसंके, मारी पासे रदेलो आ मृग मारे वैरी थयो ने. कारण के, ते तमारा जन पीठ उपर रहेना सिंहथी व्हीवे . जो ते मृग सिंहथी जय पामतो न. होततो हुँ हमेशां तमारा चरणकमलना दर्शन करत. वन्नी हे नाथ, तमाएं ते चरणकमल इंजोना मस्तक उपर रहेन पुष्पमात्रामांयी खरीपमेला पुष्पो