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बटकावेला मोतीओनी मालाओनी फुलोने हमेशां मयूरपक्षीयो सर्पनी कांचली मानी मनमां आवेश लावी तेनो संहार करे छे, शुकपक्षिओ पाकेला दामीमना बीजनी बुद्धिथी तेने खेंचे ने अने चकोर पक़ीओ प्रत्येक रात्रे चंजनी कांतिनी ब्रांतिथी तेपर पोतानी चांचुथी तेने उगले . ४७
विशेषार्थ ते चैत्यनी अंदर मणिमय गृहना हारनी नपर मोतीनी मालानी झुलो बटकावेली . ते झुलो धोळी होवायी त्यां रहेला मोर, पोपट अने चकोर पनीओने तेने विषे जुदो जुदो संत्रम थाय . मोर पती
ओ तेने सर्पनी कांचनी मानी तेपर प्रहार करवा जाय , शुकपक्कीओ दामिमना दाणानी ब्रांतियी तेओने खेंचवा जाय ने अने चकोरपनीओ चांदनीनी ब्रांतिथी तेनीपर चांचो नांखवा जाय . आ उपरथी 'ते चैत्यनी अंदर मोतिरोनी समृद्धि घणी थे,' एम बताव्युं जे.अहिं ब्रांतिमान् अलंकार