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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप
७५ सुभानु शाम्ब से हार गया। शाम्ब ने सुभानु को पकड़ लिया। सत्यभामा ने जब सुभानु की हार की बात सुनी, तब रोती हुई वह उपालम्भ के स्वर में कृष्ण से बोली : “शाम्ब आपके दुलार के कारण मेरे बेटे को जीने नहीं देगा। इसलिए, उसे मना कीजिए।” सत्यभामा के ऐसा कहने पर कृष्ण ने शाम्ब के पास अपना सन्देश भेजा, ताकि वह सुभानु को छोड़ दे। इसपर भी जब उसने अस्वीकार कर दिया, तब कृष्ण स्वयं शाम्ब के पास गये और उसकी उद्दण्डता के लिए उसे बहुत तरह से समझाया और डाँटा भी। फिर भी, चार करोड़ लेने के बाद ही शाम्ब ने सुभानु को छोड़ा। ___ इस प्रकार, इस प्रकरण में, रुक्मिणी तथा उसके पुत्र प्रद्युम्न और शाम्ब के द्वारा सत्यभामा और उसके पुत्र सुभानु के अपमानित-पराजित किये जाने का पूरा-का-पूरा प्रसंग कथा के प्रधान गुणों-रुचिरता और रोचकता से ओतप्रोत है।
'प्रतिमुख' अधिकार की कथावस्तु :
वस्तुतः, इसी अधिकार से 'वसुदेवहिण्डी' या 'वसुदेवचरित' की कथावस्तु का प्रारम्भ होता है। संघदासगणी ने वसुदेवचरित का प्रारम्भ बड़े नाटकीय ढंग से उपन्यस्त किया है। एक दिन प्रद्युम्न वसुदेव का रूप धरकर उनके घर में गया। वसुदेव की पत्नियों ने, वसुदेव के भ्रम में, प्रद्युम्न को प्रणाम किया और उसकी अर्चना की । उसके बाद उन्होंने प्रद्युम्न से पूछा : “देव कहाँ से आ रहे हैं ?" तब उसने कहा कि ज्येष्ठ भाई के घर से आ रहा हूँ। फिर, उसने बताया कि ज्येष्ठ भाई के घर आकाशचारी श्रमण आये थे और उन्होंने भरतक्षेत्र के धातकीखण्डद्वीप का वर्णन किया। इसके बाद प्रद्युम्न, वसुदेव की पत्नियों (अर्थात्, अपनी दादियों) के समक्ष धातकीखण्ड का भौगोलिक वर्णन करने लगा। तभी वसुदेव ने अपने आगमन की सूचना दी। किन्तु, प्रतिहारियों ने उन्हें रोक दिया और उनसे पूछा : “मेरे राजा तो अन्त:पुर में विराज रहे हैं। तुम उनकी तरह रूप धारण करनेवाले कौन हो?" "क्या बकते हो?” कहकर प्रतिहारियों को डाँटते हुए वसुदेव अन्त:पुर के भीतर चले गये। वहाँ उन्होंने अपना ही गम्भीर स्वर सुना। स्पष्ट है कि प्रद्युम्न ने न केवल उनके रूप का, अपितु उनकी स्वरभंगी का भी बड़ी सफलता से अनुकरण किया था।
प्रद्युम्न ने जब वसुदेव को देखा, तब अपने स्वाभाविक रूप में आकर उसने उनकी चरण-वन्दना की। आशीर्वाद देते हुए उन्होंने प्रद्युम्न से पूछा : “देवियों से कौन बातचीत कर रहा था?” प्रद्युम्न ने उत्तर दिया : “आपकी प्रतीक्षा करते हुए मैंने आपका रूप धरकर क्षणभर के लिए देवियों (अपनी दादियों) को मोहित किया।" तब हँसते हुए वसुदेव ने कहा : “पोते ! देवता की भाँति इच्छानुकूल रूप धारण करनेवाले तुम अनेक हजार वर्ष जियो।” ____ इसके बाद प्रद्युम्न ने वसुदेव से उनके हिण्डन के वृत्तान्त जानने का कौतूहल व्यक्त किया।
और, प्रद्युम्न द्वारा सबको इकट्ठा किये जाने पर वसुदेव ने अपना यात्रा-वृत्तान्त सुनाना प्रारम्भ किया। इसी क्रम में वसुदेव ने पहले अन्धकवृष्णि-कुल का सांगोपांग परिचय प्रस्तुत किया । 'शरीर' अधिकार की कथावस्तु : __इस पाँचवें अधिकार के कुल अट्ठाईस लम्भों में यथाप्राप्त छब्बीस लम्भों के अन्तर्गत वसुदेव ने अपनी आत्मकथा का विस्तार किया है। पूरी कथा उत्तमपुरुष ( फर्स्ट पर्सन) में कही गई है । यही