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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___नारी-मात्र से द्वेष रखनेवाला धम्मिल्ल परिस्थितिवश घोर कामचारी बन जाता है। अन्त में, मुनि के उपदेश से अपने चारित्रिक उत्थान में सफल होकर तपोबल से देवत्व प्राप्त कर लेता है। यही 'धम्मिल्लहिण्डी' का मुख्य विषय है। इसीलिए, भगवान् महावीर ने धम्मिल्लचरित की समाप्ति करते हुए कहा है : “एवं खलु धम्मिल्लेणं तवोकम्मेणं सा इड्डी लद्धा (पृ. ७६) जैसा कहा गया, वसुदेवचरित कहने के पूर्व भगवान् महावीर ने राजा श्रेणिक से 'धम्मिल्लचरित' कहा था। उसी कथा को सुधर्मा ने कूणिक (बिम्बिसार-पुत्र अजातशत्रु) से सावधान होकर सुनने के लिए कहा।
'पीठिका अधिकार की कथावस्तु :
___ 'वसुदेव ने किस प्रकार परलोक में फल प्राप्त किया?' ऐसा राजा श्रेणिक के पूछने पर भगवान् महावीर ने जो कथापीठिका उपस्थित की, उसे संघदासगणी ने वसुदेव के बृह्द् इतिहास के प्रासाद की पीठ (आधारभूमि) कहा है। इसी पीठिका' अधिकार में यह स्पष्ट हुआ है कि द्वारवती नगरी के स्वनामधन्य दस दशाओं में वसुदेव दसवें और अन्तिम थे। द्वारवती नगरी आनर्त, कुशार्थ (कुशावर्त), सुराष्ट्र और शुकराष्ट्र जनपदों की अलंकार-स्वरूप श्रेष्ठ नगरी थी। इसी प्रकरण में प्रद्युम्न और शाम्बकुमार की कथा का मोहक प्रसंग उपन्यस्त है। राम (बलराम) और कृष्ण की अग्रमहिषियों के परिचय की कथा भी विमोहक ढंग से कही गई है। ज्ञातव्य है कि ये सारी कथाएँ ब्राह्मणाम्नाय की पारम्परिक कथापद्धति से पर्याप्त भिन्न रूप में उपस्थित की गई हैं, जिससे इनमें विशिष्ट अभिनवता और मौलिकता का समावेश हुआ है। कथाभूमि में सर्वत्र लोकजीवन की अन्तरंगता अनुस्यूत है । कथा कहने में विचित्रता और विविधता केवल संघदासगणी की ही अपनी विशेषता नहीं है, अपितु यह सम्पूर्ण प्राकृत कथा-वाङ्मय का निजी वैशिष्ट्य है।
__ इस अधिकार में रुक्मिणी और सत्यभामा के सपत्नीत्व का प्रसंग भी बड़ी रुचिर शैली में अपारम्परिक रीति से चित्रित किया गया है। रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न और शाम्ब ने तो मानों सत्यभामा और उसके पुत्र सुभानु को बराबर छकाते रहने का ही बीड़ा उठा लिया है। यहाँतक कि सुभानु के लिए एकत्र की गई एक सौ आठ कन्याओं को भी शाम्ब अपने अधीन कर लेता है।
'मुख' अधिकार की कथावस्तु :
‘पीठिका' को 'प्रद्युम्नचरित' और 'मुख' को 'शाम्बचरित' कहना अधिक उपयुक्त होगा। अनेक विस्मयजनक कथाओं और अन्त:कथाओं एवं अवान्तर कथाओं से परिगुम्फित प्रद्युम्न और शाम्ब के अद्भुत-अपूर्व चरित को उपन्यस्त करने में कथाकार का अभिप्राय वसुदेव के वंशजों के साहसिक चरित्र की ओर संकेत करना है। वसुदेव के इन वंशजों की वीरगाथाएँ या प्रेमकथाएँ लोकजीवन की युगीन प्रवृत्तियों की परिचायिका हैं । अत:, समाज की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक गतिविधि के अध्ययनार्थ इन कथाओं की बड़ी उपयोगिता है। देश का सच्चा इतिहास और उसका नैतिक और सामाजिक आदर्श की विविधता और विचित्रता इन कथाओं में सुरक्षित है।
'मुख' अधिकार में मुख्यत: शाम्ब और सुभानु के पारस्परिक क्रीड़ा-विनोद की कथा है। इसमें शाम्ब और सुभानु की द्यूतक्रीड़ा का प्रसंग तो सर्वाधिक रुचिकर है। एक बार द्यूतक्रीड़ा में