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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा सोमश्री ने प्रसाद-स्वरूप वसुदेव के मुँह में मिठाइयाँ डालीं और मद्यपान कराया। नशे की स्थिति में उन्होंने उसके साथ रतिसुख प्राप्त किया। एक दिन, भोजन पच जाने पर, आधी रात में जब उनकी नींद खुली, तब उन्होंने सोमश्री की जगह किसी दूसरी ही स्त्री को देखा। वसुदेव के आश्चर्यचकित होने पर उस स्त्री ने वेगवती के रूप में अपना परिचय दिया और बताया कि उसका दुष्ट भाई मानसवेग सोमश्री को अपहत कर प्रमदवन में ले आया और उसे अपने प्रति अनुकूलित कराने के लिए उसने मुझे उसके (सोमश्री के पास भेजा। परन्तु, सोमश्री आपके प्रति अनन्य अनुराग रखती थी, इसलिए वह तनिक भी विचलित नहीं हुई। वेगवती से ही वसुदेव को यह जानकारी प्राप्त हुई कि सोमश्री के कहने पर ही वेगवती वसुदेव को सोमश्री के पास ले जाने के लिए अशोकवनिका में आई और अपने को सोमश्री के रूप में उपस्थित किया। किन्तु, अन्त में वेगवती ने इसके लिए वसुदेव से क्षमा माँगी। सोमश्री के माता-पिता को अपनी दासियों से जब यह सूचना मिली कि वसुदेव के वासगृह में सोमश्री की जगह कोई दूसरी ही स्त्री है, तब वेगवती से पूछताछ की गई। वस्तुस्थिति स्पष्ट होने पर राजा (सोमश्री के पिता) ने वेगवती को पुत्री-तुल्य सम्मान दिया। इस प्रकार, वसुदेव वेगवती के साथ, राजमहल में रहकर विषय-सुख का अनुभव करने लगे (तेरहवाँ वेगवती-लम्भ)। एक दिन वसुदेव सम्भोग-सुख के आस्वादजन्य श्रान्ति की कारण सोये हुए थे कि एकाएक शरीर में ठण्डी हवा लगने से जग पड़े और उन्होंने अनुभव किया कि उन्हें कोई आकाशमार्ग से हर ले जा रहा है। तभी, उन्हें सामने एक पुरुष दिखाई पड़ा, जिसका मुँह थोड़ा-थोड़ा वेगवती से मिलता था। वसुदेव के मन में यह धारणा बँधी कि दुरात्मा मानसवेग उन्हें मार डालने के लिए कहीं ले जा रहा है। ऐसा खयाल आते ही वसुदेव ने मानसवेग पर मुक्के से प्रहार किया। मानसवेग तो अदृश्य हो गया और वसुदेव निराधार होकर गंगानदी के जल की सतह पर आ गिरे। पानी में परिव्राजक-वेशधारी कोई पुरुष खड़ा था। उसने वसुदेव को गिरते ही घोड़े की भाँति अपनी पीठ पर थाम लिया और परितुष्ट होकर कहा : “आपके दर्शन से मेरी विद्या सिद्ध हो गई।" फिर, उसने वसुदेव से पूछा : “कहिए, आप कहाँ से आ रहे हैं ?" वसुदेव ने छद्म उत्तर दिया : “मुझे आकाशमार्ग से दो यक्षिणियाँ ले जा रही थीं। रास्ते में वे मुझको लेकर 'मेरा-तेरा' कहकर झगड़ने लगी और मुझे छोड़ दिया। बस, मैं आसमान से सीधे यहाँ आ गिरा।" ___परिव्राजक से ही वसुदेव को ज्ञात हुआ कि वह कनखलद्वार में आ पहुँचे हैं। उन्हें यह भी पता चला कि परिव्राजक कोई विद्याधर है । वसुदेव से उस विद्याधर ने कहा कि वह उन्हें कौन-सा प्रीतिदान दे। तब, वसुदेव ने उससे आकाशगमन की विद्या माँगी। विद्याप्राप्ति के लिए विद्याधर उन्हें किसी दूसरे स्थान में ले गया और बोला : “यहाँ बहुत सारे विघ्न होते हैं। विघ्न करनेवाली . देवियाँ स्त्रीरूप धरकर मोह लेती हैं। इसलिए, उनके बीच आप मौनव्रत धारण कर साहसपूर्वक सब सहेंगे।” इसके बाद वसुदेव को दीक्षा देकर वह विद्याधर चला गया और यह कह गया कि एक दिन-रात बीतने पर वह फिर लौटकर आयगा। ___ सन्ध्या के समय नूपुर और मेखला झनकारती हुई कोई नयनमनोहर युवती वहाँ आई और वसुदेव की प्रदक्षिणा करके उनके सामने खड़ी हो गई । वसुदेव ने सोचा कि साक्षात् विद्या आकर उपस्थित हुई है। तभी वह प्रणाम करती हुई बोली : “आपसे वरदान प्राप्त कर मुक्त होना चाहती हूँ।"
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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