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________________ ५९४ . वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा वुच्छो (९२.२३) : 'बूढो' (व्यूढो-सं.) के अर्थ में प्रयुक्त । मूलपाठः 'उदरे वुच्छो' = पेट (ग) में धारण किया हुआ। वुट्टे (१२०.९) : छुट्टो [देशी प्राकृत ] ; उन्मुक्त; बन्धनमुक्त। [विष्–वियुक्त होना ]; विष्ट > विट्ठ > वुट्ट (अर्द्धमागधी प्रवृत्ति—प्रथमा एकवचन की विभक्ति 'अ: • 'की जगह 'ए')।। वेकड (१०६.७) : कथाकार द्वारा लहसुन, प्याज और हींग के साथ प्रयुक्त यह शब्द किसी उत्कट गन्धवाले पदार्थ की ओर संकेत करता है। मूलपाठ है : 'पलंडु लसुण-वेकङ-हिंगूणि छगलमुत्तेण सह रुचियाणि।' वेअड = विकट 1 वेण : वयण (१८०.१०) : [देशी] बिछावन; बिछौना; शय्या । वेयालीए (७९.६) : वेलाए (वेलायां—सं.) का यह प्रयोग-वैचित्र्य प्रतीत होता है। प्रसंग के अनुसार, वेला (तट) का ही अर्थ व्यक्त होता है। मूलपाठ : 'दहिणवेयालीए समुद्दमज्जणं सेवमाणी' = दक्षिण तट पर समुद्रस्नान का सेवन करती हुई। [स] संगार (५४.१८) : यह देशी शब्द है। इसका अर्थ ‘संकेत' है। संजाववेडं (२४७.१) : संयमितुं (सं.), समझाने के लिए; संयत या नियन्त्रित करने के लिए। संधुक्किम (२३८.७) : सन्धुक्षित (सं.), सुलगाया; सतेज किया। सउवग्यायं (१३३.१२) : सोपोद्घातं (सं. क्रि. वि.); उपोद्घात (भूमिका)-सहित । सएझय (६२.९) : [देशी ] प्रातिवेशिक; प्रातिवेश्मिक; पड़ोसी। सकण्णा (३६२.३) : सकर्णा (सं.), विदुषी। सक्खणे ! (३६९.७) : श्लक्ष्णे (सं.); सुन्दरि !; लावण्यवति !; चंचले ! कथाकार द्वारा निर्मित यह सम्बोधन-शब्द संस्कृत 'श्लक्ष्ण' का प्रतिरूप प्रतीत होता है, जिसके सुन्दरतावाची अनेक अर्थ विभिन्न कोशों में निर्दिष्ट हुए हैं। सच्छम (६७.१४) : [देशी ] सदृश के अर्थ में प्रयुक्त । सं. रूप 'सत्सम' या 'सक्षम' सम्भव है। सतीत (१७९.५) : शयित (सं.), सोया हुआ। 'य' का 'त'। यह भी प्रयोग-वैचित्र्य का ही निदर्शन है। सदुतिउ (१३७.२०) : सयुवतीक: या सद्वितीयकः (सं.); युवती-सहित या दूसरी के साथ । समकडकीमाणं कडिल्लं (९४.२६) : मूल ग्रन्थ के सम्पादकों ने ही इस प्रयोग पर प्रश्न-चिह्न लगाया है। प्रसंगानुसार अर्थ अनुमित है : (घोड़े) ने कमर को मटकाया; कमर को झटका दिया । कडिल्ल = कटि, कमेर। समय (१२१.१७) : (सं.) 'शास्त्र के अर्थ में प्रयुक्त ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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