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कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द
वाल (४४.२१) : व्याल (सं.), दुष्ट हाथी । (पालि : पूँछ के बाल 1).
वाससे (३०.४) : वाशसे (सं.); चीखते-चिल्लाते हो [वाश् शब्दे ] | अमरसिंह ने पक्षियों या तिर्यक् जातियों की आवाज को 'वाशित' कहा है : 'तिरश्चां वाशितं रुतम् ' ( अमरकोश : १.६.२५) ।
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वासी (६३.८) : बसूला ( बढ़ई का औजार) ।
वाह (२.१०) : प्राचीन परिमाण - विशेष आठ सौ आढक का परिमाण । (पालि : गाड़ी • का भार ।)
विअड (८०.११) : विकट (सं.), प्रकट; विवृत; खुला हुआ ।
वित्त (४४.१०) : अर्जित (सं.), उपार्जित किया। 'विढत्त' का संस्कृत 'रूप' 'विधृत' सम्भव है । इसी का तिङन्त रूप 'विढवेइ' ('वसुदेवहिण्डी' : ११६.२७) भी द्रष्टव्य है ।
वितड्डि (३०.३) : वितर्द्धि (सं.), वेदिका; हवनस्थान; चौतरा ।
वितड्डिय (२८१.१०) : वितत (सं.); विस्तृत; फैला हुआ ।
वित्त (१८७.२) : वृत्त (सं.), कविता; पद्य; छन्द ।
वित्थिजत्ता (८०.२८) : वृत्तियात्रा (सं.), वृत्ति, यानी संसिद्धि के लिए आयोजित यात्रा । विलइय (३७०.११) : विलगित (सं.), (रथ पर चढ़ना; (धनुष पर डोरी) चढ़ाना । विलया (९६.३२) : [ देशी ] वनिता ।
विलिओ (१३९.२) : व्रीडित: (सं.); यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है 'लज्जित' । 'देशीनाममाला' में हेमचन्द्र ने लज्जार्थक चार शब्दों में 'विलय' को भी परिगणित किया है : ‘लज्जाइ विलिय-विट्ठूण-वेदूणा तहेव वेलूणा ।' (७.६५)
विसरियनिसित (१८८.१) : विस्मृतनिशित (सं.); मूलपाठ है : 'एक्कपोग्गलपइट्ठियविसरियनिसित व्व पसन्नदिट्ठी ।' तपोनिरत बाहुबली का यह उत्प्रेक्षामूलक चाक्षुष बिम्ब है। बाहुबली अपनी ध्यानमग्नता के कारण जंगम होते हुए भी स्थावर-से लगते हैं ( ‘जंगमपवरो होइऊण थावरो सि जाओ। ') ध्यानावस्थित बाहुबली की तीक्ष्ण (निशित) दृष्टि प्रसन्न है और किसी एक वस्तु (पुद्गल) पर जाकर निश्चल हो गई है, मानों वह दृष्टि सुध-बुध भूल गई हो ( विसरिय) । इस सन्दर्भ में, एकाग्र ध्यान में अवस्थित महायोगी का धार्मिक बिम्ब उद्भावित होता है ।
वीसरियाणि (१७९.१): विसृतानि (सं.), मूलपाठ है : 'वीसरियाणि कवाडाणि' किवाड़ खुल गये [ वि + सृङ् गतौ ] ।
वीसुं (२७३.२६) : विष्वक् (सं.); समन्तात्; चारों ओर से; सब ओर सें ।
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