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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
कुंटी (३५७.१७), : कुण्टी (सं.), लूली- लँगड़ी, बौनी - कुबड़ी ।
कुंभग्गसो (६४.१३) : कुम्भाग्रश: (सं.); मगधदेश का एक परिमाण, टोकरी-की-टोकरी (वस्तु) ।
कुक्कुस (६२.१) : [ देशी ] भूसा ।
कुम्मास (१३६.१८) : कुल्माष (सं.), कुल्माष उड़द, मूँग आदि धान्य-विशेष के अर्थ को द्योतित करता है, किन्तु कथाकार ने इस शब्द को रंजन- क्रिया के अर्थ में रंगबोधक बिम्बोद्भावन के लिए, प्रयुक्त किया है। मूलपाठ है: 'अंजणधाउकुम्मासो इव रययपव्वयो' = अंजन धातु से रंजित रजतपर्वत के समान । कुल्लरिया (३९.२८) : हलवाई की दुकान। यह देशी शब्द है ।
कूर (२९०.५) : भात । 'देशीनाममाला' (२.४३) में भी भात को कूर कहा गया है : 'अत्र' कूरं भक्तमिति संस्कृतसमत्वान्नोक्तम् ।'
· कूवं गयस्स (५३.२३) : 'कूव' देशी शब्द है । 'कूवं गयस्स' का अर्थ होगा : चुराई हुई (कूपंगत ) चीज की खोज में गये हुए (व्यक्ति का) ।
कोट्टाअ : कोट्टग (६१.२७) : कोट्टाक (सं.); बढ़ई ।
कोडुकिनेमित्ती (११९.९) : क्रोष्टुकिनैमित्तिक (सं.), सियार की आवाज के आधार पर शकुन विचारनेवाला या लक्षण बतानेवाला ज्योतिषी ।
'कोलंब (४४.९) : 'कोलंब' शब्द पालि और संस्कृत में भी प्राप्त होता है । किन्तु, अर्थ भिन्न है । संस्कृत में 'कोलम्ब' का अर्थ है - वीणा का ढाँचा या तार-रहित वीणा । पालि में बड़े बरतन को 'कोलंब' कहा गया है । किन्तु, संघदासगणी द्वारा प्रयुक्त प्राकृत 'कोलंब' शब्द से प्रसंगानुसार पहाड़ के तराई - भाग का अनुमान होता है । 'वसुदेवहिण्डी' के गुजराती - अनुवाद के कर्ता प्रो. साण्डेसरा ने 'कोलंब' का अर्थ प्रदेश किया है। मूलपाठ है : 'एयस्स पव्वयस्स पुरिच्छमल्ले कोलंबे दोन्हं नतीणं मज्झभाए।' 'प्राकृतशब्दमहार्णव' में 'कोलंब' का अर्थ वृक्ष की शाखा का झुका हुआ अग्रभाग दिया गया है।
कोलाल (२२.२८) : कुलाल (सं.), खप्पड़, मिट्टी के बरतन का टूटा हुआ टुकड़ा । प्रचलित अर्थ: कुम्भकार ।
केवइयं (३०३.२) : कियत् (सं.); कितना (परिमाणवाचक) ।
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खंडिय (३२०.७-८ ) : खण्डिक (सं.), छात्र, विद्यार्थी । खंत (२२.११) : पिता [देशी ] ।