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________________ ५७८ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा से, 'भृत्यों ने थके हुए घोड़े की मालिश की', ऐसा अर्थ भी प्रसंग - ध्वनित होता है। ओलइय (४०.७) : अवलगित (सं.); (शरीर से) लगा (सटा हुआ; पहना ( धारण किया) हुआ । ओलोयण (३५७.३) : अवलोकन (सं.); छतदार बरामद्रा, जहाँ से सुखपूर्वक बैठकर बाहर दूर तक के दृश्य का अवलोकन किया जा सके। सामान्य अर्थ : गवाक्ष; वातायन । (विशेष द्रष्टव्य : प्रस्तुत शोधग्रन्थ का वास्तुप्रकरण) । ओवग : ओवग्गिय (३५५२८) : उपवल्ग : उपवल्गित (सं.); आक्रान्त, आच्छादित । मूलपाठ : 'पुप्फोवगदुम' = पुष्पाक्रान्त या पुष्पाच्छादित वृक्ष । ओसक्किय (१३६.३१) : अवष्वष्कित (सं.); पीछे हटा या भागा हुआ; उत्तेजित किया हुआ। ओसद्ध (३४८.१३) : [ देशी ] आहत; पातित । मूलपाठ: 'तुसारोसद्धा इव पउमिणी' तुषाराहत कमलिनी के समान । = ओसहिपमत्त (२१६.२८) : ओषधिप्रमर्द (सं.), ओषधि से उत्पन्न घाव । मूलानुसार, कथा है कि युवती पुण्ड्रा की जाँघ चीरकर (उसके शैशव के समय रखी गई) जो ओषधि शल्यचिकित्सा द्वारा निकाली गई, उससे जाँघ में कुचलन या घाव (प्रमर्द) हो आया था। वह घाव संरोहिणी ओषधि के प्रयोग से भर गया । ओहामिय (८८.२१) : [देशी ]; अभिभूत; तिरस्कृत; विजित । [क] कंडियसाला (६२.१) : कण्डिकशाला (सं.); कण्डित = साफ-सुथरा किया हुआ । प्रसंगानुसार अर्थ: चावल छाँटने या साफ-सुथरा करने का घर । यह आधुनिक 'खलिहान' से भी तुलनीय है । कंसमादीया (१११.७) : कंसादिका: (सं.), 'कंस' और 'आदीया' के बीच में 'म' का आगम कथाकार के आगमिक प्रयोग - वैचित्र्य का सूचक है । कंसार (३५३.३) : [ देशी] चावल के आटे में चीनी या गुड़ मिलाकर बनाई जानेवाली मिठाई । मुण्डन, उपनयन, विवाह आदि सामाजिक संस्कारों के अवसरों पर होनेवाले देवपूजन, विशेषतः सूर्यपूजा, हवन प्रभृति विभिन्न मंगलकार्यों में इसका व्यवहार होता है । लोकभाषा में इसे 'कसार' कहते हैं । 1 कच्छुल्ल (३२५.५) : [ देशी] नारदका नाम- विशेष । 'जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश' के अनुसार, शलाकापुरुषों में ९ शरदो को भी परिगणित किया गया है। प्रसिद्ध ६३ शलाकापुरुषों के अतिरिक्त : नारद, १२ रुद्र, २४ कामदेव और १६ कुलकरों आदि को मिलाने पर १६९ शलाकापुरुष जाते हैं। नौ नारदों के नामों में भिन्नता मिलती है । कथाकार संघदासगणी ने कुल तीन नारदों का उल्लेख
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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