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________________ ५७७ कतिपय विशिष्ट विवेचनीय शब्द उल्लोय (१६१.१५) : उल्लोक (सं.), छत । 'पाइयसद्दमहण्णवो' में 'उल्लोय' का 'उल्लोच' संस्कृत-प्रतिशब्द है, जिसका अर्थ 'चाँदनी' किया गया है। उवक्खेसु (२७६.२) : उपस्कुरु (सं.), पास ले आओ, अपना बना लो। पालि में भी - 'उपक्खट' विशेषण का प्रयोग मिलता है, जिसका अर्थ है पास लाया हुआ। उवछुभति (१४५.१२) : उपक्षिपति (सं.); एकत्र करता है। उवयंताणि (१३८.२) : उत्पतितानि (सं.); उभरे हुए (चरण-चिह्न)। उवहाण (४.२२) : उपधान (सं.), तकिया; विशिष्ट तपश्चर्या । उवाइडं (२९.२५) : उपयाचितुं (सं.), मनौती मानने (उतारने) के लिए। उवाय (१२४.२७) : ‘उवायण' का ण-लुप्त प्रयोग। उपायन (सं.); उपहार; भेंट। उवायोपाएहिं (१४९.२७) : उत्पातावपातै: (सं.); ऊपर उछलने और नीचे गिरने की क्रियाओं से। उहावणा (१०२.४) : अपभावना (सं.); दुर्भावना। ऊसासिय (६७.९) : उच्छ्वासित (सं.); उन्मुक्त, उन्मोचित । (प्रसंगानुसार : घोड़े को जीन आदि के बन्धन से मुक्त किया।) [ए] एक्कसिहाए (२२१.२४) : एकशिखात: (सं.); एकबारगी। इसका दूसरा संस्कृत-रूप 'एकस्पृहया' भी सम्भव है। मूलानुसार, यहाँ उपद्रवकारी विद्युन्मुख हाथी से डरी हुई एक बालिका का चाक्षुष बिम्ब उपस्थित किया गया है। डरी हुई बालिका धरती पर उगी हुई कमलिनी जैसी लग रही है; यूथभ्रष्ट हिरनी (हरिणजुवई) की भाँति उसका शरीर भय से स्तम्भित है। जिस प्रकार हाथी वनलता की चोटी पकड़कर, उसे एकबारगी उखाड़कर ऊपर उठा लेता है, उसी प्रकार वसुदेव ने हाथी के प्रहार से बचाने के लिए बालिका की चोटी पकड़कर उसे एकबारगी ऊपर उठा लिया। इस ऊपर उठाने की क्रिया में वसुदेव की उस बालिका के प्रति एकान्त स्पृहा भी सजग हो आई थी। साथ ही, हाथी और वसुदेव के कार्य और स्वभाव की समानता की समासोक्ति का आधार लेकर कथाकार ने 'एकसिहाए' जैसे एक शब्द के द्वारा सरस शृंगारिक बिम्ब को विशाल अर्थफलक पर अंकित किया है। " [ओ] ओयविन्त (२६५:२) ओजस्वित (सं.); ओज:पूर्ण । ओरुभिय (४६.१४) : (अवा + रुह्) अवारोहित (सं.); उतारा गया। प्रसंगानुसार अर्थ होगा : रथ में जुते घोड़े को खोलकर उसकी पीठ पर से पलान उतारा। ('पेसजणेण य तुरया रहो य जहाठाणं पवेसिया, ओरुभिया य।') 'ओरुभिया'
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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