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________________ ५६४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा १४. जम-कुबेरसरिसा रायाणो कोवे पसादे य। (३५४.३-४) __ (राजा क्रुद्ध होने पर यम के समान और प्रसन्न होने पर कुबेर के समान हो जाते हैं।) १५. पुरिसा बलसोहिया कइयविया अकयष्णू। (३६२.११-१२) (बलवान् या समर्थ पुरुष प्राय: धूर्त और अकृतज्ञ होते हैं।) १६. इत्थिजणो थोवहियओ अगणियकज्जा-ऽकज्जो अदीह्रदरिसी। (३६३.२) (स्त्रियाँ छोटे, यानी संकीर्ण हृदयवाली, अनगिनत कार्य-अकार्य करनेवाली और अदीर्घदर्शी होती हैं।) १७. सवत्थ नाणं परिताणं । (१३.३०) (सर्वत्र ज्ञान ही परित्राण करता है।) १८. जीवंतो नरो भई पस्सइ । (२४७.२१) (जीवित मनुष्य ही कल्याण देखता है।) तुल : जीवन्नरो भद्रशतानि पश्येत् । (हितोपदेश) निष्कर्ष : इस प्रकार, संघदासगणी ने अपने कथाग्रन्थ में अनेक प्रकार की सार्वभौम मूल्यपरक सूक्तियों द्वारा लोकवृत्तानुकूल उपदेशों तथा ऐहिक जीवन को सुखी बनानेवाले सिद्धान्तों का चामत्कारिक ढंग से निबन्धन किया है। यद्यपि इन सूक्तियों का कथावस्तु के साथ अन्तरंग सम्बन्ध है, तथापि इनका अपने-आपमें स्वतन्त्र महत्त्व भी स्पष्ट है। . कुल मिलाकर, भाषिक संरचना एवं साहित्यिक तत्त्वों के विनियोजन की दृष्टि से 'वसुदेवहिण्डी' की विशेषता की इयत्ता नहीं है। अतएव, इस बृहत्कथा-कल्प ग्रन्थ को ज्ञान, शिल्प, विद्या और कला का समुच्चय प्रस्तुत करनेवाला शास्त्र कहा जायगा, तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वस्तुत; इस कथाग्रन्थ की कामदुधा भाषा में विनिर्मित साहित्य निधि में भारतीय जीवन, संस्कृति और कला-चेतना की समस्त गरिमा एक साथ समाहित हो गई है, जिसके ऐन्द्रिय सौन्दर्य-बोध में अतीन्द्रिय परमानन्द या संविद्वश्रान्ति की महानिधि का साक्षात्कार होता है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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