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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा इसके अतिरिक्त, प्रथमानुयोग के अन्तर्गत संस्कृत के प्रमुख कवि, जैसे जिनसेन (८-९वीं शती) ने 'हरिवंशपुराण' हेमचन्द्र (१२वीं शती) ने 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित', जिनसेन के शिष्य गुणभद्र (८- ९ वीं शती) ने 'उत्तरपुराण' और पुष्पदन्त (११ वीं शती) ने 'महापुराण' में बृहत्कथा की परम्परा का स्वतन्त्र रूप से अनुसरण किया है। 'बृहत्कथा' के अन्तर्गत गन्धर्वदत्ता और चारुदत्त की कथा इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि वह प्राय: परवर्ती सम्पूर्ण कथा - वाङ्मय में अनुचित्रित हुई । हरिषेण (८ - १०वीं शती) ने 'बृहत्कथाकोश', देवेन्द्रगणी (११-१२वीं शती) ने 'आख्यानमणिकोश', मलधारिहेमचन्द्र (१२वीं शती) ने 'भव-भावना' और रामचन्द्र मुमुक्षु (१६वीं शती) ने 'पुण्यास्रवकथाकोश' में उक्त कथा का समावेश कर अपनी कथा - रचना को विकसित - पल्लवित किया है। ३८ कहना न होगा कि महाकवि गुणाढ्य एक साथ ही कर्मठ और अध्यवसायी, उद्भट प्रत्यालोचक, मनस्वी सत्यसन्ध, सुकुमार शैली के सुललित कवि, निर्भीक और उत्क्रान्तिकारी तथा रसवादी औपन्यासिक थे । साथ ही, उनकी 'बृहत्कथा' हृदय-विमोहक और सार्थक कथाकृति है । पैशाची में गुणाढ्य ने इतनी सफलता के साथ 'रोमांस' को अपने कथाग्रन्थ में समाविष्ट किया है। कि उसके प्रभाव का परवर्त्ती कथा-साहित्य पर पारम्परीण संक्रमण असहज नहीं है । गुणाढ्य के चरित्र-चित्रण में आदर्शवाद के पुट से हम उल्लसित हो जाते हैं, उत्साहित हो जाते हैं, निराश नहीं होते; हँसने लगते हैं, रोने नहीं लगते; भारतीय संस्कृति के विकास पर हम गर्वित हो जाते हैं, उसके दोषों को पढ़कर लज्जित नहीं हो जाना पड़ता है। यह आदर्शवाद अकेले गुणा को कथाकारों में अग्रगण्य बनाने को पर्याप्त है । 'बृहत्कथा' को चाहे जिस दृष्टिकोण से देखें-मौलिकता, चरित्र-चित्रण, भाषा, वर्णन-शैली, उत्कृष्टता, सफलता - सभी तरह से वह अद्वितीय है और विश्वसाहित्य के योग्य कथाग्रन्थों में पांक्तेय है । 'वसुदेवहिण्डी' इसी अद्वितीय कथाग्रन्थ का अनन्य नव्योद्भावन है, जिसकी प्रभावान्विति से सम्पूर्ण भारतीय कथा - वाङ्मय ही नहीं, अपितु विश्व-कथावाङ्मय अनुप्राणित है । (ख) 'वसुदेवहिण्डी' का कथासंक्षेप ‘वसुदेवहिण्डी' में कृष्ण के पिता वसुदेव का यात्रा - वृत्तान्त उपन्यस्त है । वह (वसुदेव) जैनों के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे । वसुदेवजी ने सम्पूर्ण बृहत्तर भारत का हिण्डन, अर्थात् भ्रमण किया था, इसलिए इस कथाकृति का नाम 'वसुदेवहिण्डी' सार्थक है । यह महत्कथा या वसुदेव का यात्रा-वृत्तान्त साहसिक एवं रोमांचकारी, शृंगारी एवं समुत्तेजक आख्यानों और उपाख्यानों से भरा हुआ है। इसके रोमानी आख्यानों में कामकथाओं पर आधृत धर्मकथाओं को बड़ी स्वाभाविकता से समाविष्ट करने का रचना - शिल्प परिलक्षित होता है, जिससे कथा - साहित्य का यह गौरव-ग्रन्थ कामाध्यात्म की महत्कथा के रूप में शीर्षस्थ हो गया है। साथ ही, यह न केवल उत्तरकालीन जैन लेखकों, अपितु जैनेतर कथालेखकों के लिए भी उत्कृष्ट कथादर्श के रूप प्रतिष्ठित है। लोकोत्तरचरित वसुदेव का विलक्षण व्यक्तित्व : द्वारवती नगरी के दस दशार्हो (यादवों) में वसुदेव का स्थान दसवाँ और अन्तिम था। दस दशार्ह इस प्रकार हैं : समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द और
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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