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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप करनेवाला इप्फक' (इत्यक) नामक एक ईर्ष्यादग्ध विद्याधर उसकी वधू के साथ उसका भी अपहरण कर लेता है। इन्हीं देवयोनियों में एक दूसरे व्यक्ति दिवाकरदेव द्वारा उनकी रक्षा की जाती है। अन्त में सम्राट् नरवाहनदत्त राजा अवन्तिवर्द्धन के साथ सुरसमंजरी के विवाह के पक्ष में निर्णय देता है और इप्फक को एक वर्ष के लिए वाराणसी के श्मशान में प्रेत का अभिशप्त जीवन बिताने की सजा भी (सर्ग ३)।
काश्यप आदि ऋषियों के आग्रह पर ही नरवाहनदत्त अपनी साम्राज्य-प्राप्ति और छब्बीस विवाहों की कथा सुनाता है। कथा के क्रम में ही यह बात स्पष्ट होती है कि मदनमंजुका से, जो कलिंगसेना गणिका की पुत्री है, उसका विवाह होता है। एक दिन मदनमंजुका तिरोहित हो जाती है और फिर उसी के अन्वेषण-क्रम में नरवाहनदत्त को अनेक प्रकार के रोमांचक साहस-पूर्ण कार्यों का प्रदर्शन करना पड़ता है, और इसी क्रम में उसे और भी पलियाँ हस्तगत होती हैं।
इस प्रकार, नरवाहनदत्त द्वारा संकेतित छब्बीस पलियों के विवाह की कथा 'बृहत्कथाश्लोक संग्रह' में पूरी नहीं हो पाई है, इसलिए 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' अपूर्ण ग्रन्थ है, जिसको आधारादर्श या उपजीव्य बनाकर लिखी गई 'वसुदेवहिण्डी' को भी अपूर्ण ही छोड़ दिया गया है। किन्तु, इतना स्पष्ट है कि 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' और उसके बाद उपलब्ध 'वसुदेवहिण्डी'-इन दोनों महत्त्वपूर्ण नव्योद्भावनों से, जैसा पहले कहा जा चुका है, 'बृहत्कथा' के मूलरूप के निर्धारण में पर्याप्त सहायता मिली है।
'वसुदेवहिण्डी' के अतिरिक्त परवर्ती कथा-साहित्य पर गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' का प्रभाव :
गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' ने न केवल 'वसुदेवहिण्डी' को प्रभावित किया है, अपितु परवर्ती प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत-कथासाहित्य को भी पुनरुज्जीवित किया है । गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' पर आधृत 'वसुदेवहिण्डी' के अन्तर्गत 'धम्मिल्लचरित' में अगडदत्तमुनि की आत्मकथा उपलब्ध होती है । इस कथा को आचार्य देवेन्द्रगणी (११-१२वीं शती) ने 'अगडदत्तचरियं' नाम से स्वतन्त्र रूप में गाथाबद्ध करके अलंकृत काव्य का रूप दे दिया। संघदासगणिवाचक की 'वसुदेवहिण्डी' की विशेषता इस मानी में है कि इसके युगान्तरकारी कथालेखक ने अपने प्रस्तुत कथाग्रन्थ में प्राक्कालीन लोक-कथाओं में बिखरे हुए कथाबीजों को समाहृत कर उसे ऐसा रससिक्त और व्यवस्थित रूप दिया है कि उसकी प्रभाव-परम्परा का एक असमाप्य पक्ष ही उपन्यस्त हो गया है। यही कारण है कि अगडदत्त जैसा अदम्य साहसी, प्रबल पराक्रमी, महाप्राज्ञ और मितमधुरभाषी पुरुष लोक-परम्परा का अतिशय प्रिय चरितनायक बन गया है। अपने पुरुषार्थ से असम्भव कार्य को भी सम्भव कर देनेवाले किसी व्यक्ति को हम सहज ही 'अगड़धत्त' कह देते हैं। लौकिक कहावतों और मुहावरों में भी 'अगड़धत्त' नाम प्रचलित-प्रथित हो गया है । वस्तुतः, यह 'अगड़धत्त'
और कोई नहीं, प्रत्युत 'वसुदेवहिण्डी' की अगडदत्त-कथा का नायक 'अगडदत्त' ही है। प्रथमानुयोग के प्रख्यात अपभ्रंश-कवि पुष्पदन्त द्वारा ‘णायकुमारचरिउ' में चित्रित नागकुमार का चरित्र नरवाहनदत्त या वसुदेव के चारित्र्योत्कर्ष की प्रभा से ही परिदीप्त है। १. 'वसुदेवहिण्डी' में 'इप्फक' के स्थान पर 'हेप्फक' या 'हेप्फग' नाम का उल्लेख हुआ है।