SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा उनके समय का ही प्रतिनिधित्व करता है। कथाकार ने पौराणिक संकेतों के आधार पर प्रबन्ध कल्पना की है कि एक बार जरासन्ध ने वसुदेव के बड़े भाई समुद्रविजय को यह मैत्री-सन्देश भेजकर उनसे सहायता की प्रार्थना की : 'आप यदि मेरे प्रबल प्रतिपक्षी सिंहपुर के राजा सिंहरथ को बन्दी बना लेंगे, तो मैं आपको अपनी पुत्री जीवद्यशा और अपना प्रधान नगर प्रदान कर दूंगा।' जरासन्ध की प्रार्थना सुनकर वसुदेव ने अपने बड़े भाई से निवेदन किया कि कंस के साथ मुझे ही युद्ध में जाने दीजिए। किन्तु, समुद्रविजय ने नहीं माना, इसलिए कि उन्हें विश्वास था कि वसुदेव ने कभी लड़ाई देखी तक नहीं। परन्तु, वसुदेव के बार-बार आग्रह करने पर समुद्रविजय ने उन्हें कंस एवं अनेक अन्य लोगों के साथ युद्ध में भेज दिया। कंस वसुदेव का सारथी बना था। इस युद्ध में वसुदेव ने हस्तकौशल और कंस ने गदाकौशल का अद्भुत प्रदर्शन किया। अन्त में, वसुदेव युद्धधुरन्धर सिंहरथ को बन्दी बनाकर द्वारवती ले आये। समुद्रविजय ने वसुदेव का बड़ा सम्मान किया और कंस को जरासन्ध की पुत्री जीवद्यशा दे दी गई । वसुदेव को यह कहकर मना लिया गया कि क्रौष्टुकिनैमित्तिक के वचनानुसार जीवद्यशा दोनों कुलों का नाश करनेवाली है। ___ इसके बाद, समुद्रविजय और वसुदेव ने जीवद्यशा के भावी पति कंस के क्षत्रियत्व की जानकारी के निमित्त उसकी उत्पत्ति-कथा जाननी चाही। इसके लिए रसवणिक् को बुलाया गया, जिसने शिशु कंस को काँसे की पिटारी में यमुना में बहते हुए पाया था, और जिस शिशु के साथ उग्रसेन नाम से अंकित मुद्रा बँधी थी । वसुदेव कंस को उग्रसेन का पुत्र जानकर राजगृह ले आये और जरासन्ध से उन्होंने उसके वंश और पराक्रम की बात कही। उग्रसेन के पुत्र के रूप में कंस का समर्थन हो जाने पर जरासन्ध ने अपनी पुत्री उसे दे दी। कंस ने जब सुना कि जन्म लेते ही उसे उसके पिता ने प्रवाहित करा दिया था, तब वह बड़ा रुष्ट हुआ और जरासन्ध से वरदान में उसने मथुरा नगरी माँग ली। फिर, द्वेषवश उसने अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बना लिया और स्वयं वह राज्य का शासन सँभालने लगा। इससे स्पष्ट है कि जरासन्ध का प्रताप और प्रशासन राजगृह से मथुरा तक, अर्थात् दूर-दूर तक व्याप्त था। भरत-क्षेत्र के तत्कालीन मगध-जनपद में अवस्थित शालिग्राम नामक गाँव के मनोरम उद्यान की सुमना नाम की यक्षशिला पर पूजा के लिए जनपदवासियों की भीड़ लगती थी। यह शिला, सुमन यक्ष के नाम पर स्थापित की गई थी। मगध-जनपद के सुग्राम नामक गाँव की भी बड़ी महत्ता थी, जिसकी अनेक घटनाओं को कथाकार ने कथाबद्ध किया है। उस जनपद का पलाशपुर ग्राम भी अपना महत्त्व रखता था। सुग्राम और पलाशपुर के स्कन्दिल ब्राह्मणों की अपने समय में बड़ी चर्चा रही होगी, तभी तो जैन कथाओं के प्रतिनिधि एवं निधिग्रन्थ 'वसुदेवहिण्डी' में उनका बार-बार कीर्तन किया गया है। वसुदेव अपने भ्रमणकाल में अपना छद्म-परिचय मगध के गौतमगोत्रीय स्कन्दिल ब्राह्मण के रूप में ही प्रस्तुत करते थे। उस समय सुग्राम के बाहर प्रतिष्ठित आयतन की बड़ी महिमा थी। वहाँ के निवासी गन्ध और माल्य के साथ आयतन में पूजा के लिए आते थे। कथाकार द्वारा उपन्यस्त कथाओं से यह ज्ञात होता है कि उस समय मगध-जनपद में अनेक धर्माचार्य तपोविहार के लिए आया करते थे। जैसा पहले कहा गया, मगध का राजा जरासन्ध बड़ा प्रतापी था। संघदासगणी ने उसके लिए 'सामंतपत्थिवपणयमउडमणिकराऽऽरंजियपायवीढो'
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy