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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन
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औत्सविक प्रथा भी बड़ी प्राचीन है। कथाकार ने लिखा है कि पुराकाल में चम्पानरेश राजा पूर्वक अपनी रानी के समुद्र स्नान के दोहद की पूर्ति के लिए युक्तिपूर्वक प्रवाहशील जल से परिपूर्ण सरोवर का निर्माण कराया और उसे ही समुद्र बताकर रानी को दिखलाया। रानी ने उसमें स्नान करके अपनी दोहद- पूर्ति की और पुत्र प्राप्त करके वह प्रसन्न हुई । तब से रानी अपने मनोविनोद के लिए पुत्र और पुरवासियों के साथ सरोवर के पार्श्ववर्त्ती सुरवन की यात्रा करती रही और उसी यात्रा का अनुवर्त्तन बहुत दिनों तक होता रहा (गन्धर्वदत्तालम्भ: पृ. १५५ ) ।
उस महासरोवर के ही तट पर भगवान् वासुपूज्य का मन्दिर प्रतिष्ठित था । चम्पानगर में वह मन्दिर आज भी यथापूर्व प्रतिष्ठित है । गन्धर्वदत्ता के लिए आयोजित होनेवाली मासिकी संगीत-सभा में एक बार वसुदेव पहुँचे और उन्होंने अपनी संगीत - निपुणता से गन्धर्वदत्ता को पराजित कर शर्त के अनुसार, उसे पत्नी रूप में प्राप्त किया। विवाह के बाद एक दिन वसुदेव गन्धर्वदत्ता और चारुदत्त सेठ के साथ वहाँ की उद्यान श्री को देखने और वासुपूज्यस्वामी की वन्दना के लिए गये थे, जहाँ उन्हें मातंगकन्या विद्याधरी नीलयशा से भेंट हुई थी, जो बाद में उनकी पत्नी बनी। इस प्रकार, कथाकार ने अंग- जनपद तथा उसकी राजधानी चम्पापुरी एवं प्राचीन चम्पामण्डल के आधुनिक स्थान 'बौंसी' में अवस्थित, मेरुगिरि के समकक्ष मन्दरपर्वत की सांस्कृतिक समृद्धि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
कथाकार ने बिहार-राज्य के दो प्राचीन जनपदों— अंग और मगध की विशद चर्चा उपन्यस्त की है। 'वसुदेवहिण्डी' की कथा मगध- जनपद की राजधानी राजगृह नगर से ही प्रारम्भ होती है । कुशाग्रपुर और मगधपुर (प्रा. मगहापुर) राजगृह के ही पर्यायवाची (नाम) थे। कथांकार के अनुसार, तत्कालीन, मगध- जनपद धन-धान्य से समृद्ध था। वह जनपद वन-उपवन तथा कमल सहित तडागों और पुष्करिणियों से सुशोभित था । उस राजधानी के शासन- क्षेत्र में बड़े-बड़े गृहपतियों से युक्त सैकड़ों ग्राम बसे हुए थे। वह जनपद अनेक वनखण्डों के विमण्डित था, जिनमें अनेक भोज्य फूल - फल से लदे छायादार पेड़ भरे हुए थे। राजगृह नगर जल से भरी विशाल खाइयों और शत्रुओं लिए दुर्लध्य ऊँचे-ऊँचे परकोटों से आवेष्टित, गगनचुम्बी महलों से मण्डित तथा अतिशय उन्नत पर्वतों से परिवेष्टित होने के साथ ही व्यापार का केन्द्रस्थल भी था । वह नगर ब्राह्मण, श्रमण और सज्जनों का समभाव से सम्मान करनेवाले वणिग्जनों से परिपूर्ण और रथ एवं घोड़ों से व्याप्त तथा हाथियों के मदजल से सिंचित विस्तृत राजमार्गों से सुशोभित था (कथोत्पत्ति : २) ।
राजगृह में राजा श्रेणिक (बिम्बिसार) का राज्य था, जिसकी रानी का नाम चेलना और पुत्र का नाम कोणिक (अजातशत्रु) था। राजगृह का गुणशिलक चैत्यं (आश्रम : साधुओं का प्रवचन-स्थल) अतिशय प्रतिष्ठित था । महावीरस्वामी और उनके प्रधान गणधर सुधर्मास्वामी एक बार गुणशिलक चैत्य में पधारे थे, जहाँ जम्बूस्वामी ने सुधर्मास्वामी का शिष्यत्व प्राप्त किया था । सम्पूर्ण जैनागम के वक्तृबोद्धव्य (वक्ता और जिज्ञासु श्रोता) के रूप में सुधर्मास्वामी और जम्बूस्वामी के नामों को आगमिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। और यह प्रतिष्ठा देने का श्रेय बिहार के मगध- जनपद के राजगृह नगर को ही है ।
कथाकार संघदासगणी ने बृहद्रथ - पुत्र जरासन्ध के समय के पौराणिक मगध- जनपद को उपजीव्य बनाकर अनेक कथाओं का विन्यास किया है । किन्तु उनके द्वारा वर्णित मगध- जनपद