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________________ ४६० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा . 'वसुदेवहिण्डी' में भी धातकीखण्ड का भौगोलिक वर्णन आया है। प्रद्युम्न एक दिन अपने दादा वसुदेव का रूप धरकर उनके आस्थानमण्डप में जा बैठे। दादियों के पूछने पर प्रद्युम्न ने चारणश्रमण मुनि द्वारा वर्णित अलौकिक धातकीखण्डद्वीप के बारे में बताया कि, जो व्यक्ति अपनी मोटी आँखों से कतिपय खेत या पहाड़ को ही देख पाता है, वह धातकीखण्ड की लम्बाई-चौड़ाई को नहीं जान सकता। लवणसमुद्र, कालोदधि, इषुकार और चुल्लहिमवन्त (लघुहिमालय) पर्वत से घिरी (जल-स्थल-रूप दो प्रकार की) भारतभूमि की लम्बाई और चौड़ाई चार-चार लाख योजन की है। लवणसमुद्र तक इसका विस्तार ६६, १४, ११९ योजन का दो सौ बारहगुना है और कालोदधि तक का भी इसका विस्तार १९, ३९, १६९ योजन का दो सौ बारहगुना है। यही भरत क्षेत्र है (प्रतिमुख : पृ.११०)। नन्दीश्वरद्वीप की कल्पना भी अतिशय अद्भुत है। 'स्थानांग' के चतुर्थ स्थान में (सूत्र-सं. ३३८, ३३९ आदि) इस द्वीप का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। नन्दीश्वरद्वीप के अन्तराल में सात समुद्रों से वेष्टित उत्तरोत्तर चौगुने विस्तारवाले सात द्वीप हैं। जैसे : लवण-समुद्र से वेष्टित जम्बूद्वीप, कालोदधि नामक समुद्र से वेष्टित धातकीखण्डद्वीप, पुष्करवर समुद्र से आवेष्टित पुष्करवरद्वीप, वरुणवर समुद्र से वेष्टित वरुणवरद्वीप, क्षीरवर समुद्र से वेष्टित क्षीरवरद्वीप, घृतवर समुद्र से वेष्टित घृतवरद्वीप और क्षौद्रवर समुद्र से वेष्टित क्षौद्रवरद्वीप । जम्बूद्वीप से आठवाँ द्वीप है नन्दीश्वरद्वीप। इस वलयाकार द्वीप की पूर्व आदि चारों दिशाओं में चार अंजनगिरि पर्वत हैं। प्रत्येक अंजनगिरि की चारों दिशाओं में एक-एक चौकोर वापिका है। इन वापिकाओं के चारों ओर अशोक, सप्तच्छद, चम्पक और आम्र वृक्षों के चार-चार वन हैं। चारों वापियों के मध्य में एक-एक पर्वत है, जो दधि के समान श्वेत वर्ण होने से दधिमुख कहलाता है । वह पर्वत गोलाकार है और उसके ऊपरी भाग में तटवेदियाँ और वन हैं । उक्त चारों वापियों के दोनों बाहरी कोनों पर एक-एक सुवर्णमय गोलाकार रतिकर नामक पर्वत है। इस प्रकार, एक-एक दिशा में एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर, ये कुल तेरह पर्वत हुए और चारों दिशाओं के पर्वतों को मिलाकर कुल पर्वतों की संख्या बावन हो जाती है। इनपर एक-एक जिनायतन प्रतिष्ठापित है और ये ही नन्दीश्वरद्वीप के बावन मन्दिर या चैत्यालय प्रसिद्ध हैं। 'वसुदेवहिण्डी' में, आगमिक द्वीपों में अन्यतम रुचकद्वीप का भी उल्लेख मिलता है। कथाकार संघदासगणी ने रुचकद्वीप को दिक्कुमारियों के निवास के रूप में चित्रित किया है। ऋषभस्वामी के जन्म ग्रहण करने पर दिक्कुमारियाँ रुचकद्वीप की विभिन्न दिशाओं से आई थीं और उन्होंने विभिन्न उपकरणों [गन्धोदक, दर्पण, श्रृंगार (झारी), तालवृन्त, चामर, दीपिका आदि) से उनका भक्तिभाव-पूर्वक जन्मोत्सव मनाया था (नीलयशालम्भ : पृ. १५९-६०)। जैनागम की भौगोलिक परिकल्पना है कि यह पृथ्वी गोलाकार असंख्य द्वीपों, अन्तद्वीपों, सागरों और उपसागरों में विभक्त है। पुष्करवरद्वीप के मध्य भाग में एक महान् दुर्लघ्य पर्वत है, जो 'मानुषोत्तर' ('स्थानांग' : ४.३०३) कहलाता है। इस प्रकार, जम्बूद्वीप धातकीखण्ड और पुष्करार्द्ध ये ढाई द्वीप मिलकर मनुष्यलोक का निर्माण करते हैं। जम्बूद्वीप सात क्षेत्रों में विभक्त है, जिसकी सीमा निर्धारित करनेवाले छह कुलपर्वत हैं। क्षेत्रों और कुलपर्वतों के नामों का १. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य : 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान' (वही) : पृ. २९४-२९५
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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