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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन मन्दर पर्वत के उत्तर-दक्षिण में दो क्षेत्र हैं-दक्षिण में भरत और उत्तर में ऐरवत । इसी प्रकार हैमवत, हैरण्यवत, हरि और रम्यक क्षेत्र की स्थिति भरत और ऐरवत के समान है- दक्षिण में हैमवत और हरि तथा उत्तर में हैरण्यवत और रम्यक । पुनः मन्दर पर्वत के पूर्व में पूर्वविदेह तथा पश्चिम में अपरविदेह क्षेत्र हैं। पुनः मन्दर पर्वत के उत्तर में उत्तर कुरुक्षेत्र है तथा दक्षिण में देवकुरु । देवकुरु में ही कूटशाल्मली और सुदर्शनाजम्बू नाम के दो महाद्रुम हैं । इसी मन्दर पर्वत के दक्षिण में क्षुल्ल हिमवान् तथा उत्तर में शिखरी नाम के दो वर्षधर पर्वत हैं। इन दो वर्षधर पर्वतों के समान ही चार और पर्वत हैं—दक्षिण में महाहिमवान् और निषध तथा उत्तर में रुक्मी और नीलवान् । इन पर्वतों के अतिरिक्त, वृत्तवैताढ्य और दीर्घवैताढ्य तथा वक्षार पर्वतों की स्थिति भी मन्दर पर्वत के पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण में बताई गई है। ये सभी क्षेत्र, वृक्ष और पर्वत आकार
और प्रकार में एक समान हैं। अनादृत देव जम्बूद्वीप के अधिपति माने गये है। इसका समर्थन संघदासगणी ने भी किया हैः ‘आराहियपइन्नो कालं काऊण जम्बुद्दीवाहिवई जातो' (कथोत्पत्ति : अनादृत देव की उत्पत्ति-कथा : पृ. २६) । 'स्थानांग' के द्वितीय स्थान के अनुसार, जम्बूद्वीप में छह अकर्म भूमियों, छह वर्षों (क्षेत्रों), छह वर्षधर पर्वतों; दक्षिणोत्तर में स्थित छह-छह कूटों (चोटियों), छह महाह्रदों, छह देवियों; दक्षिणोत्तर-स्थित छह-छह महानदियों; पुनः पूर्व-पश्चिम में स्थित छह-छह अन्तर्नदियों की अवस्थिति का निर्देश किया गया है। इसी से इस द्वीप की विशालता का सहज ही अनुमान किया जा सकता है।
कहा गया है कि जम्बूद्वीप मध्यलोक में, असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बीच, एक लाख महायोजन व्यासवाला गोल वलयाकार रूप में अवस्थित है। बौद्धों के 'दिव्यावदान' (पृ.४०-४१) में भी जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है । 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' (३.४३) में, इस द्वीप में अट्ठारह विभिन्न श्रेणियों के पेशेवर लोगों का निवास बताया गया है। जैसेः कुम्हार, सोनार, रेशम बुननेवाला, रसोइया, गायक, नाई, मालाकार, कच्छकार, तमोली, मोची, तेली, अंगोछे बेचनेवाले, कपड़े छापनेवाले, ठठेरे, दरजी, ग्वाले, शिकारी और मछुए। इस प्रकार जम्बूद्वीप तत्कालीन बृहत्तर भारत का ही पर्याय था। यह जम्बूद्वीप दो लाख योजन विस्तारवाले लवणसमुद्र से वलयाकार वेष्टित है।
___ 'वसुदेवहिण्डी' में धात्रीखण्ड या धातकीखण्डद्वीप का भी प्रचुर वर्णन हुआ है। 'स्थानांग' (४.३३६) के अनुसार, धातकीखण्डद्वीप की वलयसीमा चार लाख योजन की है। धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्द्ध में धातकीवृक्ष आठ योजन ऊँचा है। वह बहुमध्यदेशभाग में आठ योजन चौड़ा है और सर्वपरिमाण में आठ योजन से भी अधिक है (तत्रैव : ८.८६)। लवणसमुद्र धातकीखण्डद्वीप से वेष्टित है और धातकीखण्ड आठ लाख योजन विस्तारवाले कालोदधि समुद्र से आवेष्टित है। इसमें भी मन्दर पर्वत की स्थिति मानी गई है। यह जम्बूद्वीप से चौगुना बड़ा है। ...
पुष्करार्द्ध या अर्द्ध-पुष्करवरद्वीप अथवा पुष्करवरद्वीप भी 'वसुदेवहिण्डी' में वर्णित हुए हैं। अर्द्ध-पुष्करवरद्वीप, संक्षिप्त नाम पुष्करद्वीप की भौगोलिक महत्ता और विशेषता जम्बूद्वीप और धातकीखण्ड के ही समान है। किन्तु, आकार में धातकीखण्ड से चौगुना, अर्थात् सोलह लाख योजन विस्तारवाला है। १. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य : ‘सार्थवाह' (वही) : पृ. १८०