________________
४३२
वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा कहा : 'मत डरो। जाओ, राजा से कहो कि आर्या देवी ने जो भविष्य-भाषण किया था, तदनुसार कन्या (प्रियंगुसुन्दरी) का पति अन्त:पुर में आ गया है।' गंगरक्षित चला गया।
कुछ ही क्षणों के बाद किलकारियाँ भरती कौमुदिका आई। राजा एणिकपुत्र से सम्मानित गंगरक्षित भी आया। उसने राजा से प्रीतिदान में प्राप्त कड़े अपनी भुजाओं में पहन रखे थे। वह वसुदेव के पैरों पर गिरकर सन्तुष्ट भाव से उठ खड़ा हुआ और बोला : ‘कन्या के पति के अन्त:पुर में पधारने की बात कहते ही राजा ने सम्मानित करते हुए मेरा आलिंगन किया !' (द्र. प्रियंगुसुन्दरीलम्भ)
इस प्रकार, कथाकार संघदासगणी ने आर्या देवी की भविष्य-वाणी की युक्ति उपस्थित कर अन्त:पुर के उपरिवर्णित रति-रहस्य को स्वीकृत्यात्मक सामाजिक मूल्य देने का प्रयास किया है और अन्तःपुर के इस रोमांस की औचित्य-सिद्धि की भी चेष्टा की है। किन्तु, इस कथा से तत्कालीन राजकुल के अन्त:पुरों में चलनेवाले प्रच्छन्न रंग-रभस का भी स्पष्ट संकेत हुआ है। इसके अतिरिक्त, कन्या के अन्त:पुर के निरीक्षक के साथ रतिप्रौढा दासियों की छेड़खानी और उनकी प्रगल्भता तथा चतुराई एवं नर्मक्रीड़ा-प्रवणता का जैसा उत्तेजक और यौनोष्मा से उद्दीप्त, साथ ही हृदयहर एवं नीतिगर्भ चित्रण किया गया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ ही है।
उक्त रसोच्छल कथाप्रसंग में संघदासगणी ने अन्त:पुर की सामाजिक संस्कृति का सातिशय प्राणवन्त प्रतिबिम्बन किया है। कथा से स्पष्ट है कि उस समय द्वारपाल अपने कर्तव्य के पालन के समय भुजाली, तलवार और बेंत एक साथ धारण करता था। राजा स्वयं अपनी आँखों परीक्षा करके, चरित्रवान् व्यक्ति को ही कन्या के अन्त:पुर में निरीक्षक नियुक्त करता था। फिर भी, कन्याएँ निरीक्षक को, अपने स्वभावज मायागुणों से यथायोजित रत्यात्मक षड्यन्त्र में सहायक बनने को विवश कर देती थी। अन्तःपुर में निरीक्षक के अतिरिक्त अनेक अमात्य और भृत्यवर्ग भी रहते थे। राजकन्या की सहायक सखियाँ यद्यपि दासियाँ कहलाती थीं, तथापि वे प्राय: नर्मदूती की भूमिका का निर्वाह करती थीं। इनके अतिरिक्त भी अनेक दासियाँ होती थीं, जो सही मानी में सेविका का कर्तव्य निबाहती थीं।
इसी प्रकार, राजकुल में रानियों का अन्तःपुर भी बड़ा रहस्यमय होता था और वहाँ सभी रानियों में सपत्नी-भाव की प्रबलता रहती थी और सभी सपलियाँ मिलकर प्रधान महिषी या पटरानी को उत्पीडित करने का षड्यन्त्र रचती थीं। बन्दी बनाई गई या युद्ध में हथियाई गई स्त्रियों को राजा अपने अन्त:पुर में ही रख लेता था। संघदासगणी द्वारा वर्णित ऐसे राजाओं में कालदण्ड (धम्मिल्लचरित : पृ. ६०) और काकजंघ (तत्रैव : पृ. ६३) एवं उनके अन्त:पुरों का उल्लेखनीय महत्त्व है। ___ संघदासगणी ने लम्बी दाढ़ीवाले अतिक्रान्तवय जमदग्नि ऋषि की चर्चा की है। वह कन्या की भिक्षा माँगते हुए इन्द्रपुर के राजा जितशत्रु के राजभवन में आये। राजा ने मन्त्रियों से विचार-विमर्श करके यह निश्चय किया कि इस वृद्ध ऋषि को विवाह से विमुख कर देना चाहिए। राजा के निर्णय की सूचना मिलते ही जमदग्नि स्वयं कन्या के अन्त:पुर में चले गये और वहाँ उन्होंने कन्याओं से पसन्द करने का आग्रह किया। कन्याओं ने बूढ़े जमदग्नि को दुतकार कर भगा दिया, जिससे वे रुष्ट हो गये और कन्याओं को कुबड़ी हो जाने का अभिशाप दे दिया (मदन वेगालम्भ : पृ. २३७) । इस कथा से स्पष्ट है कि ऋषियों का, कन्याओं के अन्त:पुर में भी अबाध प्रवेश था और सम्पूर्ण राजभवन उनकी तप:शक्ति से आतंकित रहता था।