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________________ ४३० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा एक दिन उत्पलमाला गंगरक्षित को उलाहना देने लगी। तब गंगरक्षित ने 'तुमने आचार का उल्लंघन किया है, ऐसा कहकर उसे ऐसा बोलने से मना किया। तब दासी बोली : 'तुम मृत्यु के निकट चले गये हो।' तभी राजकुल का अतिशय विश्वस्त और गंगरक्षित्त का बालसखा मर्कटक गंगरक्षित के पास आया और बोला : 'ओ मित्र ! तुमने राजा को सन्तुष्ट कर लिया है। जिस समय उत्पलमाला एकान्त में अंगचेष्टा का प्रदर्शन करते हुए तुम पर प्रणयाघात कर रही थी, उस समय राजा महल की खिड़की से देख रहे थे। उन्होंने तुम्हें अपने पास बुलाया है।' गंगरक्षित मर्कटक के साथ राजा के पास गया और उन्हें प्रणाम करके थोड़ी दूर पर खड़ा रहा। राजा ने उसका सत्कार किया और उसके आचरण से विश्वस्त होकर उसे कन्या के अन्तःपुर की व्यवस्था में नियुक्त कर दिया। एक दिन गंगरक्षित प्रियंगुसुन्दरी के घर गया। उस समय प्रियंगुसुन्दरी का पूर्वाह्न भोजन का समय था। उसने उससे भोजन करने का आग्रह किया। तभी दासियाँ गंगरक्षित को व्यंग्य-बाणों से बेधने लगीं। दासियाँ चारों ओर से उसे कहने लगी कि यह अचेतन ( = मूर्ख) है, और फिर हँसी के साथ उन्होंने उसे हाथ पकड़कर बैठा दिया। उसके बाद वे उसके पास भोजन-सामग्री ले आईं। उसी समय कौमुदिका नाम की दासी ने व्यंग्य करते हुए उससे कहा : 'हम आप जैसे पण्डित को भोजन करते देखना चाहती हैं, ताकि हम भी भोजन करने की विधि सीख सकें।' समृद्ध रीति से भोजन करने की बात सोचकर वह सभी भोजन-सामग्री को एक साथ मिलाकर बिल के समान अपने मुँह में कौर डालने लगा। तब दासियाँ कहकहे लगाती हुई बोली : 'ओह ! वेश्यालय में रहकर इसने परम्परागत रीति को अच्छी तरह जान लिया है।' ___ दासियों द्वारा की जानेवाली गंगरक्षित की दुर्दशा की यहीं इतिश्री नहीं हुई। जब वह प्रियंगुसुन्दरी के घर से वापस आ रहा था, तभी उन दासियों ने 'तुम्हारी भुजाली (बड़ी छुरी) देखू' कहकर उसकी भुजाली ले ली और एक ने तो उसकी तलवार भी छीन ली। फिर वे बोली : 'जहाँ बेंत की छडी पर्याप्त है वहाँ अन्य हथियारों की क्या जरूरत?' तब गंगरक्षित ने उन दासियों को समझाया : ‘सुन्दरियो ! त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ और काम) के सम्बन्ध में तीन प्रकार के पुरुष विचारणीय होते हैं। जैसे: उत्तम, मध्यम और अधम । इनमें अधम के लिए शस्त्रधारण किया जाता है। उत्तम पुरुष तो आँख से देखे जाने पर ही अपराध-कर्म से निवृत्त हो जाता है। मध्यम कोटि का पुरुष कहने या मना करने से रुक जाता है; किन्तु अधम कोटि का पुरुष तो विना प्रहार किये अपराध-कर्म नहीं छोड़ता। अन्त में उसके लिए हथियार की जरूरत पड़ती है।' यह कहकर गंगरक्षित ने एक गाथा में अपनी बात को समेटा कि इस प्रकार त्रिवर्ग की दृष्टि से पुरुष तीन प्रकार के होते हैं : शत्र, मित्र और मध्यस्थ । इसके बाद सन्दरियों ने गंगरक्षित से कहा : 'मित्र और शत्रु की विशेषता हमें बताओ।' उसने कहा : 'मित्र हितकारी होता है और शत्रु अहितकारी । जो न हितकारी होता है, न ही अहितकारी, वह मध्यस्थ होता है।' सुन्दरियों ने पुन: प्रश्न किया: ‘इन तीन प्रकार के पुरुषों में तुम हमारी स्वामिनी के लिए कौन हो ?' 'मैं तो स्वामिनी का दास हूँ।' गंगरक्षित ने उत्तर दिया। तब दासियों ने उसे फटकारा : “अरे ! तुम तो प्रलाप करते हो। तुमने पुरुष तो तीन प्रकार के बतलाये, फिर चौथा 'दास' कहाँ से हो गये?" गंगरक्षित बड़े चक्कर में पड़ गया। बहुत देर तक सोचने के बाद बोला : 'मैं स्वामिनी का मित्र हूँ।' तब वे हँसती हुई बोली : 'मित्र क्या हित ही करता है
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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