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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन
४१५ वैज्ञानिक चेतना :
'वसुदेवहिण्डी' में तत्कालीन लोकसांस्कृतिक चेतना में वैज्ञानिक चेतना का भी अद्भुत समन्वय उपलब्ध होता है । संघदासगणी ने कथा के व्याज से उस युग की सांस्कृतिक उपलब्धियों में तकनीकी प्रविधि की भी उत्कृष्टतर विकासात्मक स्थिति की ओर इंगित किया है। अन्तरिक्ष में शब्द और प्रकाश की गति-सीमा का निर्धारण या फिर जाँघ में दवा डालकर लिंग-परिवर्तन की वैज्ञानिक चेतनामूलक कथा पर यथाप्रसंग प्रकाश डाला जा चुका है। इसके अतिरिक्त, उस युग में विमान या हवाई जहाज के निर्माण की प्रविधि के विकसित होने तथा भगवान् के भाषण के विभिन्न कर्णवन्त प्राणियों के लिए उनकी अपनी-अपनी भाषा में परिणत होने की चर्चा से सम्बद्ध विज्ञानशास्त्रीय कथाएँ भी अपने-आपमें पर्याप्त रोचक और विस्मयजनक हैं । इन प्रसंगों से कथाकार की वैज्ञानिक परिकल्पना के ततोऽधिक उत्कर्ष की सूचना प्राप्त होती है। यथावर्णित आकाशगामी यन्त्र, चक्रयन्त्र और घोटकयन्त्र उस युग की कथाओं में प्रसिद्ध उड़नखटोले की मिथकीय कल्पना के रोचक उदाहरण हैं। इसी सन्दर्भ में यन्त्रकपोत के भी मनोरंजक प्रसंग का उल्लेख हुआ है। इस सम्बन्ध में कोक्कास नामक बढ़ई के पुत्र की कथा का अन्वीक्षण आनुषंगिक होगा।
कथा है कि ताम्रलिप्ति नगरी में रिपुदमन नाम का राजा रहता था। उसकी रानी का नाम प्रियमति था। उसी नगरी में धनपति नाम का एक धनाढ्य व्यापारी था। वह राजा का लँगोटिया साथी था। उसी नगरी के धनद नाम के बढ़ई के एक पुत्र हुआ। दरिद्रता के कारण चिन्ता करते-करते धनद और उसकी पत्नी दोनों मर गये। इस बढ़ई का बेटा धनपति के घर पलने लगा। चूँकि, वहाँ वह भूसाघर में भूसा (कुक्कुस) खाता था, इसलिए उसका नाम 'कोक्कास' पड़ गया।
कुछ दिन बाद, कोक्कास धनपति सार्थवाह के पुत्र धनवसु के साथ समुद्र-पार यवनदेश चला गया। वहाँ वह पड़ोस के ही व्यापारी-कुल के एक बढ़ई के घर जाकर समय बिताने लगा। उस बढ़ई के बेटे अनेक प्रकार के, बढ़ईगिरी के काम सीखते थे, किन्तु वे अपने पिता द्वारा दी जानेवाली शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते थे। कोक्कास उन्हें मदद करता—'ऐसा करो, ऐसा होना चाहिए।' बढ़ई-पुत्रों के आचार्य (पिता) ने विस्मित होकर कोक्कास से कहा : 'पुत्र ! तुम मुझसे विद्याएँ सीखो।' आचार्य की शिक्षण-कुशलता से कोक्कास ने कम समय में ही सभी काष्ठकर्म सीख लिये और आचार्य की आज्ञा लेकर समुद्री नाव से ताम्रलिप्ति लौट आया।
ताम्रलिप्ति में कोक्कास के बड़ी कड़की के दिन चल रहे थे। उसने अपने जीवनोपाय के निमित्त राजा के समक्ष आत्मज्ञापन की बात सोची। उसने दो यन्त्रकपोत (यन्त्र से उड़नेवाले कबूतर) बनाये। वे कबूतर प्रतिदिन राजा के महल की ऊपरी छत पर सूखनेवाले धान चुग लेते थे। रखवालों ने इसकी सूचना राजा. रिपुदमन को दी। राजा के नीतिकुशल रखवाले पता लगाकर कोक्कास के घर आये और दोनों यन्त्रकपोतों को पकड़कर ले गये। फिर राजाज्ञा से कोक्कास को भी बुलवाया गया। पूछने पर उसने राजा से अपनी निर्धनता की सारी बात बता दी। राजा ने सन्तुष्ट होकर उसे सम्मानित किया और उससे कहा कि तुम एक ऐसा आकाशचारी यन्त्र बना दो, जिसमें दो आदमी अभीप्सित देश की यात्रा कर सकें। कोक्कास ने राजाज्ञा के अनुकूल
१. कथाकार द्वार वर्णित यन्त्रकपोत को वर्तमान ‘हेलिकॉप्टर' का प्रतिरूप कहा जा सकता है। ले.