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________________ ४१४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा में, अष्टापद पर्वत की तराई में, निकटी नदी के तटवासी तापस सोमप्रभ के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ और 'अज्ञानतप' या 'बालतप' करके परभव में सुरूप नामक यक्ष बना (केतुमतीलम्भ: पृ. ३३८) संघदासगणी ने यक्ष के साथ ही गन्धर्यों का भी मनोरम वर्णन किया है। गन्धर्व-जाति के सदस्य संगीत-कला में निष्णात होते थे, इसलिए 'गन्धर्व' शब्द संगीत का पर्याय बन गया था। संगीत के प्रतिनिधि गन्धर्यों में तुम्बुरु, नारद, हाहा, हूहू और विश्वावसु का उल्लेख कथाकार ने किया है। इन गन्धर्यों ने क्रुद्ध विष्णुकुमार को प्रसन्न करने के लिए जो गीत गाया, वह 'विष्णुगीत' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विद्याधरों ने नारद और तुम्बुरु से ही 'विष्णुगीत' ग्रहण किया था (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १३०)। विष्णुगीत के विषय में परिचय देते हुए वसुदेव ने चारुदत्त सेठ के सभासदों से कहा था कि देव-गन्धर्व के मुख से उद्गत जो गीत विष्णुकुमार के लिए निस्सृत हुआ और जिसे विद्याधरों ने धारण किया, उसे प्रधान राजकुलों में भी प्रतिष्ठा मिली। इसीलिए, सप्ततन्त्री वीणा पर गेय इस गीत की जानकारी वसुदेव को थी, क्योंकि वे भी दस दशाों के प्रसिद्ध राजकुल के सदस्य थे। उन्होंने इस गीत को अपनी अन्य पत्नी श्यामली को भी सिखाया था। इस प्रकार, शास्त्रगम्भीर कथाकार संघदासगणी द्वारा 'वसुदेवहिण्डी' में देवों और देवयोनियों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उनकी न केवल कथाचेतनामूलक रचनात्मक प्रतिभा प्रतिबिम्बित हुई है, अपितु उनके द्वारा किये गये जैन और ब्राह्मण-ग्रन्थों के लोकविश्वासों के समेकित तलस्पर्शी अध्ययन का मर्म भी शब्दित हुआ है। देव-देवियों के प्रसंग में एक ध्यातव्य तथ्य यह है कि अन्य जैन कृतियों के सदृश 'वसुदेवहिण्डी' में भी तत्कालीन ब्राह्मण-परम्परा की अनेक पौराणिक देवों को भी मानुषीकृत करके समाविष्ट कर लिया गया है। उदाहरण के लिए, विष्णु-बलि-उपाख्यान को ले सकते हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार, राक्षसों के राजा बलि को दण्डित करने के लिए विष्णु का पाँचवाँ वामनावतार हुआ। वामन-रूपी विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि की याचना की। बलि की स्वीकृति के बाद वामन ने अपने शरीर का ऐसा विस्तार किया कि उन्होंने पहले पग में पूरी धरती और दूसरे से सारा आकाश माप लिया तथा तीसरा पग बलि के सिर पर रखा और उसे पाताल जाने को विवश कर दिया। ___ 'वसुदेवहिण्डी' और 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' की विष्णु-बलिकथा का तुलनात्मक अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि 'वसुदेवहिण्डी' के जैनमुनि विष्णुकुमार वैदिक परम्परा के वामन के ही प्रतिरूप हैं। इसी सन्दर्भ में 'वसुदेवहिण्डी' की इन्द्र की कथा को या वासव के उदाहरण को भी तुलनात्मक दृष्टिकोण से अध्ययन का विषय बनाया जा सकता है। कथाकार द्वारा प्रस्तुत वैदिक देवों या देवियों के जैन रूपान्तर में वैचारिक भेदकता की न्यूनाधिकता के बावजूद कथा के ठाट की दृष्टि से आस्वाद की रमणीयता में पर्याप्त अभिनवता है। 'वस्तुतः, 'वसुदेवहिण्डी' की पौराणिक कथाओं का ब्राह्मण पुराणों की कथाओं के परिप्रेक्ष्य में तुलनामूलक या व्यतिरेकी अध्ययन एक स्वतन्त्र शोध का विषय है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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