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________________ मिल वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४११ भूत-वेताल पर विश्वास करना उस युग की लोक-संस्कृति का एक अंग था। वेताल से सम्बद्ध एक कथाप्रसंग (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १७८) इस प्रकार है : एक दिन, रात के समय, चम्पापुरी में गन्धर्वदत्ता के भीतरी घर में वसुदेव बिछावन पर आँखें मूंदे पड़े थे, तभी वे किसी के हाथ के स्पर्श से चौंक उठे और सोचने लगे कि हाथ का यह स्पर्श तो अपूर्व है । यह गन्धर्वदत्ता के हाथ का स्पर्श नहीं मालूम होता। मणिमय दीपक की रोशनी में जब उन्होंने अपनी आँखें खोलीं, तब एक भयंकर रूपधारी वेताल दिखाई पड़ा। वसुदेव सोचते ही रहे : सुनते हैं, वेताल दो प्रकार के होते है-शीत और उष्ण । जो वेताल उष्ण होते हैं, वे विनाश के लिए शत्रुओं द्वारा नियुक्त होते हैं, लेकिन शीत वेताल नित्य कहीं ले जाता है और फिर वापस ले आता है। इसके बाद वेताल वसुदेव को बलपूर्वक खींच ले चला। वेताल उन्हें गर्भगृह से बाहर ले गया। सभी दासियाँ सोई दिखाई पड़ी। वेताल ने अवस्वापिनी विद्या से उन्हें गहरी नींद में सुला दिया था, इसलिए पैर से छू जाने पर भी वे जगती नहीं थीं। दरवाजे पर पहुँचकर वेताल बाहर निकल गया, लेकिन किवाड लगाना भल गया। किन्त. उसके बाहर निकलते ही किवाड़ के पल्ले आपस में गये और दरवाजा अपने-आप बन्द हो गया। वेताल वसदेव को श्मशानगृह में ले गया। वहाँ उन्होंने एक मातंगवृद्धा को कुछ बुदबुदाते हुए देखा, जिसने वेताल से कहा : ‘भद्रमुख ! तुमने मेरा काम पूरा कर दिया, बहुत अच्छा किया।' इसके बाद वेताल ने वसुदेव को वहीं छोड़ दिया और हँसते हुए अदृश्य हो गया। इस कथा से स्पष्ट है कि वेताल कई प्रकार के होते थे और उस युग में, श्मशान में स्त्रियाँ भी तन्त्र-साधना करती थीं। तन्त्र-साधना करनेवाले तान्त्रिक किसी को वंशवद बनाने के लिए वेतालों को नियुक्त करते थे। वे वेताल नींद में सुला देने, अन्तर्हित होने आदि की विद्याओं से सम्पन्न होते थे। साथ ही, वेताल से आविष्ट व्यक्ति वेताल की आज्ञा के पालन में विवश हो जाते थे। संघदासगणी ने राक्षस-पिशाच की आकृति और भूतों के पहनावे के साथ ही, उनके द्वारा किये जानेवाले नृत्य का भी वर्णन किया है। कथा है कि एक बार आधी रात के समय वसुदेव अचानक जग पड़े और अपनी बगल में सोई किसी अज्ञात स्त्री को देखकर सोचने लगे कि मुझको छलने के लिए कोई राक्षसी या पिशाची तो नहीं आ गई है। फिर सोचा, यह भी सम्भव नहीं; क्योंकि राक्षस या पिशाच तो स्वभावत: क्रूर और भयंकर रूपवाले साथ ही प्रमाण से अधिक मोटे होते हैं (वेगवतीलम्भ : पृ. २२६)। एक दूसरी कथा में भूतों के परिधान और आयुधों तथा नृत्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है। एक बार राजा मेघरथ देवोद्यान की ओर निकला और वहाँ अपनी रानी प्रियमित्रा के साथ यथेच्छित रूप में रमण करने लगा। उसी क्रम में वह वहाँ अशोकवृक्ष के नीचे मणिकनक-खचित शिलापट्ट पर बैठा। तभी, बहुत सारे भूत वहाँ आये। वे अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, भाला, बाण, मुद्गर और फरसा लिये हुए थे; शरीर में उन्होंने भस्म लपेट रखा था; वे मृगचर्म पहने हुए थे; उनके केश भूरे और बिखरे हुए थे; काले, लम्बे साँप का उत्तरासंग धारण किये हुए थे; गले में अजगर लपेट रखा था, उनके पेट, जाँघ और मुँह बड़े विशाल थे; उन्होंने गोह, चूहे, नेवले और गिरगिट के कर्णफूल पहन रखे थे तथा बार-बार अनेक प्रकार से रूप बदलते थे। इन भूतों ने राजा मेघरथ के आगे गीत और वाद्य के गम्भीर स्वर के साथ नृत्य किया (केतुमतीलम्भ : पृ. ३३६) ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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