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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा - संघदासगणी द्वारा वर्णित अप्सराओं की विशेषता यह है कि ये किसी तपस्वी का तपोभंग नहीं करतीं, अपितु तपस्वियों के प्रति पूजाभाव रखकर उनके तप को निर्विघ्न बनाने में सहायता करती थीं। श्रमण-परम्परा में ब्राह्मण-परम्परा की भाँति किसी तपस्वी के तप से इन्द्रासन को विचलित होते नहीं दिखाया गया हैं, अपितु इन्द्र को कठोर तप में लीन तपस्वी पर प्रसन्न होकर उसकी उपासना करते दिखाया गया है। तपस्वी इन्द्रासन के आकांक्षी न होकर मोक्षासन के जिगीषु-जिगमिषु होते थे। निवृत्तिमार्गी जैन कथाओं की अप्सराओं या इन्द्रों की यह साधु प्रवृत्ति अपना अतिशय मौलिक महत्त्व और विशिष्ट सांस्कृतिक मूल्य रखती है।
अन्य देवयोनियाँ :
संघदासगणी ने अन्य देवयोनियों में भूत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग आदि ... का भी विशिष्ट वर्णन किया है, जिसमें लोक संस्कृति के अनेक मूल्यवान् पक्ष उद्भावित हुए हैं।
जैनागमों में उक्त भूत, पिशाच आदि को व्यन्तर देवों की श्रेणी में रखा गया है। इस सन्दर्भ में संघदासगणी द्वारा वर्णित व्यन्तर देवों के चरित्र का अध्ययन रुचिर प्रासंगिकता का विषय होगा।
'वसुदेवहिण्डी' की कथाओं में भूतगृहों (प्रा. भूतघर या भूयघर) का प्रसंग भयोत्पादक वातावरण के विकास के क्रम में उपस्थित किया गया है। धम्मिल्लहिण्डी (पृ. ५२) में कथा है कि वेश्या से वंचित धम्मिल्ल, जब अगडदत्त मुनि को प्रणाम करके चला, तब रास्ते में उसे एक भूतघर मिला। उस समय साँझ हो चुकी थी। धम्मिल्ल भूतघर में प्रविष्ट हुआ और तपस्या से क्लान्तशरीर होने के कारण सो गया। तभी भूतघर के देव ने स्वप्न में उससे कहा कि तुम आश्वस्त रहो। तुम्हें विद्याधर, राजा और इभ्यों की बत्तीस कन्याओं का मानुष्य उपभोग प्राप्त होगा। इसी प्रकार, एक अन्य कथा में भी भूतघर की चर्चा आई है :
एक ब्राह्मण था। बहुत उपाय करने पर उसके एक पुत्र हुआ। उस गाँव में एक राक्षस रहता था, जिसके भोजन के निमित्त कुलक्रमागत रूप से प्रत्येक घर से एक पुरुष अपने को निवेदित कर देता था। जब उस ब्राह्मण-पुत्र की बारी आई, तब ब्राह्मणी भूतघर के पास जाकर रोने लगी। भूत को उसपर दया हो आई। उसने ब्राह्मणी से कहा : 'मत रोओ। मैं तुम्हारे पुत्र की रक्षा करूँगा।' जब ब्राह्मणपुत्र ने अपने को राक्षस के लिए निवेदित किया, तब भूतों ने उसे वहाँ से अपहृत कर पहाड़ की गुफा में ले जाकर रख दिया और ब्राह्मणी से अमुक स्थान में तुम्हारे पुत्र को रख दिया है, यह कहकर वे भूत चले गये। किन्तु, होनी को कौन टाल सकता है? गुफा में पहले से बैठा अजगर उस ब्राह्मण-पुत्र को निगल गया (केतुमतीलम्भ : पृ. ३१५-३१६)। इस प्रकार, यहाँ भूत एक प्रकार के दयालु और उपकारी देव के रूप में चित्रित हुए हैं।
एक अन्य कथा में उल्लेख है कि वसन्ततिलका गणिका की माँ ने चारुदत्त को योगमद्य पिलाकर बेहोश कर दिया था और उसी हालत में उसे भूतघर में डलवा दिया था (गन्धर्वदत्तालम्भः पृ. १५४)। इस कथाप्रसंग से यह स्पष्ट है कि उस समय भूतों द्वारा लोगों के मार डाले जाने का लोकविश्वास प्रचलित था। इसलिए, षड्यन्त्रकारिणी गणिका माता ने मूर्च्छित चारुदत्त को भूतघर में डलवा दिया था, ताकि उसके मर जाने पर भी लोग यही समझेंगे कि भूत ने उसे मार डाला।