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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा दिव्य गौरव तिरोहित हो जाता था। 'वसुदेवहिण्डी' में ऐसी भी कथाएँ हैं कि अपनी सहज हितैषणावृत्ति और नागराज धरण की चेतावनी के बावजूद विद्याधरों ने उत्पीडन और अपहरण के काण्ड किये हैं। विद्याधर मानसवेग ने एक मानवी का अपहरण किया था। उसकी बहन वेगवती उसे नागराज धरण की चेतावनी का स्मरण दिलाती है, किन्तु उसका कोई फल नहीं होता। किन्तु, वह अपहृता युवती को अपने प्रासाद में नहीं, वरन् उद्यान में रखता है। दूसरी कथा है कि मानसवेग की सम्मति के विना वसुदेव ने उसकी बहन वेगवती का पाणिग्रहण किया था, अत: प्रतिक्रियावश उसने वसुदेव की दूसरी पत्नी (सोमश्री) का अपहरण कर लिया (सोमश्रीलम्भ : पृ. ३०८)। 'वसुदेवहिण्डी' में एक अन्य दुष्ट विद्याधर धूमसिंह की कथा है, जिसने विद्याधरनरेश अमितगति को कीलों से जड़कर उसकी पत्नी सुकुमारिका का अपहरण किया था (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४०)।
विद्याधरियाँ कामकला-प्रगल्भा होती थीं और वे स्वयं स्वाभीप्सित पुरुष को सम्भोग के लिए आमन्त्रण देती थीं। कामकला की क्रीडापुत्तली विद्याधरियों के उल्लेख के क्रम में काम अथवा रोमानी प्रेम का प्राधान्य और प्राचुर्य का प्रस्तवन करनेवाली महत्कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' ने वैराग्यवादी जैनकथा-साहित्य में एक समस्या की सृष्टि की है। यद्यपि इस रोमानी प्रवृत्ति की प्रमुखता के अनेक कारण उपस्थित किये गये हैं, तथापि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 'वसुदेवहिण्डी' की अधिकांश कथाओं से जो उत्कट रोमानी और प्रगाढतर वासनात्मक वातावरण बनता है, वह नैतिक उपदेशों पर प्रेमाख्यानकों के पुट देने के प्रचलित तकनीक की दुहाई देने से निराकृत नहीं हो पाता है। इसलिए, इस सन्दर्भ में डॉ. जगदीशचन्द्र जैन का यह कथन अधिक मूल्य रखता है कि 'कामकथाएँ जैन साहित्य में बहुधा उपलब्ध होती हैं और कहीं-कहीं तो यह आवरण-विधान ऐसा बन पड़ा है कि नैतिक उपदेश के अंश को, जो परम्परागत लोककथाओं में मानों परिशिष्ट के रूप में जोड़ दिया गया है, परख पाना भी मुश्किल है। इसलिए , इस सन्दर्भ में मुख्य ध्यातव्य तत्त्व यह है कि रत्यात्मक यथार्थता के चित्रण द्वारा महान् कथाकार ने अपनी कारुकारिता के प्रति ततोऽधिक ईमानदारी से काम लिया है और लोकजीवन की सहज प्रवृत्ति को नैतिकता के बलात् आरोपण या आवरण-विधान से मुक्त रखा है। ___ जो भी हो, इतना तो निश्चय ही सत्य है कि 'वसुदेवहिण्डी' में चित्रित विद्याधर-विद्याधरियों के चरित्र के व्याज से, तत्कालीन भारतीय सांस्कृतिक जीवन की कलात्मक समृद्धि के अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण आयाम समुद्भावित हुए हैं, जो अपने पाठकों के चित्त को आज भी अनास्वादित उदात्त अलौकिक भूमिका पर प्रतिष्ठित कर विस्मय से विमुग्ध कर देते हैं।
संघदासगणी ने देवयोनि-विशेष की विशिष्ट देव-जाति अप्ससओं का भी मनोहारी वर्णन उपन्यस्त किया है। इन्द्र की सभा में रहनेवाली ये रूपवती अप्सराएँ ललित कलाओं की मर्मज्ञा होती थीं और इन्द्र के आदेशानुसार तपस्वियों के मोहन, वशीकरण आदि कार्यों में प्रतिनियुक्त होती थीं। ब्राह्मण-परम्परानुसार ही कथाकार ने तिलोत्तमा, रम्भा, मेनका और उर्वशी का एक साथ उल्लेख किया है (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १३०)। ब्राह्मण-परम्परा में प्रसिद्धिप्राप्त जैन कोशकार अमरसिंह ने अपने 'अमरकोश' में अप्सराओं को 'स्वर्वेश्या', अर्थात् स्वर्ग के निवासी देवों की
१. द्र. 'परिषद्-पत्रिका', वर्ष १६ : अंक १ (अप्रैल, १९७६ ई.) में प्रकाशित तथा डॉ. रामप्रकाश पोद्दार द्वारा
अनूदित 'जैनकथा-साहित्य का गौरव-ग्रन्थः वसुदेवहिण्डी' शीर्षक लेख, पृ.४१