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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा कथाकार ने उक्त अटवियों के अतिरिक्त भूतरला नाम की अटवी का भी उल्लेख किया है। यह अटवी ऐरावती नदी के तीर पर अवस्थित था, जहाँ जटिलकौशिक तापस रहता था, जिसकी पत्नी पवनवेगा के गर्भ से राजा कपिल धम्मिल्ल नामक बालक के रूप में उत्पन्न हुआ था। (केतुमतीलम्भ : पृ. ३२३) कथाकार ने भूतरला अटवी से नामसाम्य रखनेवाली भूतरमणा अटवी का भी उल्लेख किया है। जहाँ धूमकेतु नामक ज्योतिष्क देव ने पूर्ववैरानुबन्धवश नवजात प्रद्युम्न का अपहरण करके उसे एक शिलातल पर लाकर छोड़ दिया था, इसलिए कि वह नवजात शिशु सूर्य की गरमी से सूखकर मर जाय (पीठिका : पृ. ८४)। कथाकार ने इन अटवियों के अतिरिक्त कालंजर, कालवन, भीमाटवी, विजनस्थान आदि वनों और अटवियों का भी प्रभावक वर्णन प्रस्तुत किया है।
कथाकार ने एक जगह प्राकृतिक अटवी की संसाराटवी से तुलना की है : एक जंगल में एक ही जलाशय था। वहाँ जंगल के प्यासे चौपाये आकर अपनी प्यास बुझाते थे, फिर लौट जाते थे। लेकिन, महिष उस जलाशय में आकर स्नान करता और कीचड़ में सींग मार-मारकर पानी को गैंदला कर देता, जिससे दूसरे जानवरों के लिए वह पीने लायक नहीं रहता। यह एक दृष्टान्तमात्र है। जंगल संसार-वन का प्रतीक है और आचार्य पानी के समान हैं, फिर धर्मकथा सुनने के अभिलाषी जितने प्राणी हैं, वे प्यासे चौपायों की भाँति हैं और धर्म में बाधा पहुँचानेवाले महिष के समान हैं (पीठिका : पृ. ८५)।
कथाकार ने पश्चिम प्रदेश में हिमालय के समीप स्थित जंगल में सिंह के रहने की चर्चा की है, जिसे त्रिपृष्ठ ने निरायुध होकर मारा था। त्रिपृष्ठ (कृष्ण का प्रतिरूप) इतना बलशाली था कि उसने सिंह के मुँह में हाथ डालकर उसके जबड़े को फाड़ डाला था (बन्धुमतीलम्भ : पृ. २७७) एक स्थल पर कथाकार के वर्णन से यह संकेत मिलता है कि उस समय भी जंगल में मधु एकत्र किया जाता था। मधु के छत्ते में बैठी मक्खियों को आग की धाह से भगाकर मधु एकत्र करने की प्राचीन परम्परा रही है (तत्रैव : पृ. २६०)।
__ अटवियों में स्थित चोरपल्लियों के चोरों से कभी-कभी नागरिकों की मुठभेड़ भी होती थी। कथा है कि उल्कामख चोरपल्ली का अधिपति बड़ा निर्दय था। एक दिन उसके आदमियों ने मध्यरात्रि के समय साकेतनगर को रौंद डाला और घरों को जला दिया। चोरों में उसी नगर के ब्राह्मण का पुत्र रुद्रदत्त भी सम्मिलित था। नागरिकों ने निश्चय किया कि इसी ने हमारा विनाश किया है, बस सभी उसपर टूट पड़े और उसे मार डाला (प्रतिमुख : पृ. ११३)।
वन में स्थित आश्रमों का रुचिर वर्णन भी कथाकार ने प्रसंगवश उपन्यस्त किया है। तेईसवें भद्रमित्रा-सत्यरक्षितालम्भ (पृ. ३५३) की कथा है कि सुबह होने पर वसुदेव एक आश्रम में पहुँचे। वहाँ अग्निहोत्र के कारण धुआँ फैला हुआ था, प्रत्येक कुटी के द्वार पर विश्वस्त भाव से हरिण-शिशु सोया हुआ था। रमणीयदर्शन पक्षी निर्भय होकर विचर रहे थे और अखरोट, प्रियाल (चिरौंजी), बेर, केंद (तेंदु), इंगुदी (हिंगोट), कंसार (कसेरू) तथा नीवार (तिनी धान) के ढेर पड़े हुए थे। यह आश्रम गोदावरी नदी के श्वेता जनपद में अवस्थित था। वहाँ ऋषियों ने वसुदेव को भोजन के लिए शैवाल, नवांकुर और सूखे फूल-फल अर्पित किये।