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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ३७९ गन्धहस्ती भी रहते थे और हाथियों का झुण्ड पानी पीने और जलक्रीडा करने के लिए उक्त पद्मसरोवर में उतरता था (श्यामलीलम्भ: पृ. १२२) । कथाकार ने जलावर्त्ता अटवी के वर्णन के क्रम में एक रोचक कथा उपन्यस्त की है। मा का राजा पद्मरथ चम्पानगरी के वासुपूज्य मुनि का भक्त था। एक दिन उसने वासुपूज्य मुनि की वन्दना के निमित्त राजकीय यात्रा का आयोजन किया । उसकी भक्ति की परीक्षा के निमित्त अच्युत और वैश्वानर देव ने राजा और उसके प्रधान पुरुषों के शरीर में रोग उत्पन्न कर दिया। फिर भी, राजा अविचलित भाव से अकेला ही चल पड़ा। जब वह जलावर्त्ता अटवी में पहुँचा, तब परीक्षक देवों ने वहाँ के सरोवर का सारा पानी सोख लिया। फिर भी, राजा लौटा नहीं, उसने अपनी यात्रा जारी रखी। तब देवों ने अनेक सिंह प्रकट करके राजा को डराया । किन्तु राजा पूर्ववत् अपनी धर्मनिष्ठा के प्रति अविचल बना रहा । तब, परीक्षक देवों ने अपने असली रूप को दिखलाकर मुनिभक्त राजा की वन्दना की और उससे क्षमा माँगी ( मदनवेगालम्भ : पृ. २३७)। अर्हद्दास सार्थवाह का पुत्र जिनदास, विजयपुर के राजा की पुत्री पुष्पदन्ता के साथ हंसविलम्बित घोड़े पर सवार होकर भाग निकला और बिलपंक्तिका अटवी में पहुँच गया । कथाकार ने लिखा है कि वह अटवी हिंस्रक जन्तुओं से भरी थी। उस जंगल में धनुष-बाण हाथ लिये पुलिन्द आये और जिनदास से युद्ध करने लगे । हंसविलम्बित अश्व पर सवार खड्गधारी जिनदास ने उन पुलिन्दों को पराजित कर दिया। वे पुलिन्द भाग गये । प्यास से व्याकुल जिनदास पेड़ के नीचे पुष्पदन्ता को रखकर घोड़े के साथ पानी के लिए निकला। थोड़ी ही दूर पर पहाड़ के पास जल से भरा सरोवर उसे दिखाई पड़ा। घोड़े को तीर पर खड़ा करके वह पानी पीने के लिए सरोवर में उतरा । पानी पीते समय बाघ ने उसे दबोच लिया। भयत्रस्त घोड़ा वृक्ष के पास भाग आया । खाली घोड़े को देखकर दीनभाव से रोती हुई पुष्पदन्ता सरोवर के पास गई । वहाँ बाघ से खाये गये जिनदास के अवशिष्ट शरीर को देखकर वह और भी जोर से रो पड़ी। पुलिन्दों से पहले ही बीघा गया घायल घोड़ा वहीं क्षणभर में गिरकर मर गया । उस अकेली रोती-बिलखती पुष्पदन्ता को भुग्नपुट और विभुग्नपुट के अधीनस्थ चोरों ने पकड़ लिया और वे उसे सिंहगुहा नाम की चोरपल्ली में ले गये। चोर के सेनापति का नाम विमेद्र (प्रा. विमिंढ) था, भुग्नपुट और विभुग्नपुट उसी के दो बलिष्ठ पुत्र थे । पुष्पदन्ता के लिए जब वे दोनों पुत्र लड़ने लगे, तब विमेद्र ने उसे मथुरा के राजा शूरदेव को उपहार में दे दिया । - शूरदेव ने पुष्पदन्ता को अपनी प्रधानमहिषी बनाकर रख लिया ( प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २८५ ) । इस प्रकार, कथाकार ने कथाव्याज से चोरों और हिंस्र जन्तुओं व्याप्त बिलपंक्तिका अटवी की भयानकता की ओर संकेत किया है । कथाकार के द्वारा वर्णित घटनाओं से ऐसा ज्ञात होता है कि सिंहगुहा नाम की चोरपल्ली में एक-से-एक भयानक चोरों या डाकुओं का जाल बिछा रहता था । वसुदत्ता की कथा (धम्मिल्लहिण्डी : : पृ. ६०) में भी वर्णन आया है कि असहाय वसुदत्ता को चोर जब उठा ले गये थे, तब उन्होंने उसे सिंहगुहा के चोरसेनापति कालदण्ड के समक्ष प्रस्तुत किया था । कालदण्ड ने वसुदत्ता को रूपवती जानकर उसे अपनी अग्रमहिषी बना लिया था ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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