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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप कहना न होगा कि 'बृहत्कथा' ने संस्कृत-प्राकृत-शाखा की (ई.पू.प्रथम शती के कालिदास से बारहवीं शती के हेमचन्द्र तक) विद्वन्मण्डली को समान रूप से उद्ग्रीव किया है।
प्राचीन भारत की लौकिक कथाओं का आकर-ग्रन्थ 'बृहत्कथा' उज्जयिनीनरेश वत्सराज उदयन और उनके पराक्रमी पुत्र नरवाहनदत्त के जीवनवृत्त की मनोरम कथा है। कालिदास ने अपने पार्यन्तिक काव्यग्रन्थ 'मेघदूत' के पूर्वमेघ के तीसवें श्लोक में उदयनकथा ('प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्') की चर्चा की है। मल्लिनाथ के पूर्ववर्ती टीकाकार वल्लभदेव ने 'उदयनकथा' की टीका करते हुए लिखा है : 'उदयनकथा बृहत्कथा वत्सराजवृत्तान्तः । स्पष्ट है कि कालिदास के समय अवन्ती में 'बृहत्कथा' बहुचर्चित थी, जिसे ग्रामवृद्ध बड़ी कुशलता के साथ प्रस्तुत करते थे।
पंचम-षष्ठ शतक के प्रसिद्ध कथालेखक एवं नाट्यकार सुबन्धु ने अपनी 'वासवदत्ता' नाम की कथाकृति में 'बृहत्कथा' को ‘लम्बों' से युक्त कहा है : 'बृहत्कथालम्बैरिव शालभञ्जिकानिवहैः ।' अर्थात, बृहत्कथा के लम्बों या सर्गों में शालभंजिका या स्त्रियों की कथाएँ थीं। यहाँ ज्ञातव्य है कि किसी भी बृहत्कथा की लम्बबद्धता की परम्परा सुबन्धु के समय में ही लम्बक' शब्द से प्रयुक्त होने लगी थी, जिसे सुबन्धु के परवर्ती क्षेमेन्द्र ने 'बृहत्कथामंजरी' में और सोमदेव ने 'कथासरित्सागर' में अपनाया। ___काव्यादर्शकार दण्डी (सप्तम शती) ने भूतभाषानिबद्ध 'बृहत्कथा' को अद्भुत अर्थवाली कहा है :
कथा हि सर्वभाषाभि: संस्कृतेन च बध्यते ।
भूतभाषामयीं प्राहुरद्भुतार्था बृहत्कथाम् ॥(काव्यादर्श : १.३८) ___ मालवराज मुंज का सभासद दशरूपककार धनंजय (नवम-दशम शती) ने रामायण आदि के साथ विचित्रकथाओंवाली 'बृहत्कथा' की चर्चा की है :
इत्याद्यशेषमिह वस्तुविभेदजातं रामायणादि च विभाव्य बृहत्कथां च ।
आसूत्रयेत्तदनु नेतृरसानुगुण्याच्चित्रां कथामुचितचारुवचःप्रपञ्चैः ॥ धनंजय के भाई, दशरूपक की ‘अवलोकवृत्ति' नामक टीका के कर्ता धनिक ने विशाखदत्त (पंचम-षष्ठ शतक) की प्रसिद्ध नाट्यकृति 'मुद्राराक्षस' को 'बृहत्कथा' पर आधृत बतलाया है : “तत्र बृहत्कथामूलं मुद्राराक्षसम्।”
प्रो. भोगीलाल जयचन्द भाई साण्डेसरा ने 'वसुदेवहिण्डी' के गुजराती में अनूदित संस्करण की अपनी भूमिका में, षष्ठ शतक के दक्षिण हिन्द के एक ताम्रपत्र तथा नवम शती के एक कम्बोडिया-शिलाभिलेख में 'बृहत्कथा' के आदरपूर्वक उल्लेख होने की चर्चा की है। आचार्य बलदेव उपाध्याय के अनुसार, त्रिविक्रमभट्ट (दशम शती का आरम्भ) और गोवर्द्धनाचार्य (१२वीं शती) ने 'बृहत्कथा' का प्रशंसापूर्वक स्मरण किया है।
१. द्र. मेघदूत : एक अनुचिन्तन' : डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव, प्र. मोतीलाल बनारसीदास, पटना, पृ. २४० २. 'संस्कृत-सुकवि-समीक्षा', पूर्ववत्, चौखम्बा-सं, पृ. २४०