________________
३३९
वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन साथ ही बत्तीस करोड़ का धन दिया, जिसमें मणि, सोना और चाँदी के अनेक सारे बरतन थे, प्रशस्त लक्षणोंवाले चौंसठ हाथी तथा सोने के पलान से मण्डित आठ सौ घोड़े भी थे। वसुदेव के सभी ससुरों ने भी अपनी-अपनी परिणीता पुत्रियों के लिए विपुल धन दहेज में दिया था : धनमित्र सार्थवाह ने अपनी पुत्री मित्रश्री को सोलह करोड़ दिया था, तो कपिला को उसके पिता राजा कपिल ने बत्तीस करोड़। इसी प्रकार, राजा अभग्नसेन ने अपनी पुत्री पद्मा को बत्तीस करोड़ का धन दिया था, तो केतुमती को उसके भाई जितशत्रु ने विपुल देश ही दान कर दिया था और वसुदेव की आज्ञाकारिता स्वीकार कर ली थी ('अहं तुब्नं आणत्तिकरो' त्ति भणंतेण; केतुमतीलम्भ: पृ. ३४९)। कहना न होगा कि वसुदेव ने अपनी अट्ठाईस पत्नियों के साथ अतुल असंख्य धन-सम्पत्ति प्राप्त की थी। उस युग में, इस दहेज को भी, घूस की तरह ही, 'प्रीतिदान' कहकर इस प्रथा को सांस्कृतिक गरिमा से मूल्यांकित किया गया है।
उस समय विवाहोत्सव भी अनेक प्रकार से और ठाट-बाट के साथ ('महया इड्डीए) मनाये जाते थे। विवाहोत्सव के विधि-विधान को 'कौतुक' कहा जाता था। इसके लिए संघदासगणी ने, बहुधा 'कयकोउओ', 'कोउगसएहि', 'वरकोउग' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है । वर का प्रतिकर्म
और 'प्रसाधन' करनेवाली अलग-अलग दासियाँ होती थीं। वर को देखने के लिए, झुण्ड-की-झुण्ड स्त्रियाँ महलों के जालीदार झरोखों से झाँकती थीं और कुछ तो विस्मय-विमुग्ध होकर महल से वर के ऊपर फूल बरसाती थीं तथा पाँच रंग के सुगन्धित गन्धचूर्ण बिखेरती थीं एवं कन्या के सुन्दर रूप-लावण्य-सम्पन्न वर प्राप्त करने के भाग्य की लगातार श्लाघा करती थीं। वर, पालकी में तकिया लगे आसन पर वधू के साथ बैठता था ('आसीणो य आसणे सावस्सए: बन्धुमतीलम्भ: पृ. २८१) । तरुण युवतियाँ पालकी पर श्वेत छत्र ताने हुए चलती थीं और चँवर भी डुलाती थीं। सेठ और सार्थवाह की पुत्रियों के विवाह में मित्र राजे वर-वधू को अपने राजभवन में बुलवाकर सम्मानित करते थे। श्रावस्ती के कामदेव सेठ की पुत्री बन्धुमती के विवाह में वहाँ के राजा एणीपुत्र ने वर-वधू को अपने राजभवन में ससम्मान बुलवाकर उन्हें वस्त्राभूषण का उपहार दिया था (तत्रैव : पृ. २८१)। उस काल में, दहेज पर पुत्री के अधिकार की भी घोषणा की जाती थी। वसुदेव की पत्नी प्रभावती को जब दहेज में बत्तीस करोड़ का धन दिया गया था, तब प्रभावती के पिता गान्धार ने यह घोषणा की थी कि "मेरे सम्पूर्ण कोष पर प्रभावती का अधिकार है": “पभावती में पभवइ सव्वस्स कोसस्स" ति भणंतेण य पत्यिवेण 'मंगल्लं' ति णिसिट्ठाओ बत्तीसं कोडीओ (प्रभावतीलम्भ : पृ. ३५२)।"
'वसुदेवहिण्डी' से यह भी सूचित होता है कि उस युग में एक व्यक्ति एक बार में अनेक कन्याओं के साथ विवाह करता था। जम्बूस्वामी ने एक साथ आठ सार्थवाह-कन्याओं से विवाह किया था (कथोत्पत्ति : पृ. ७) । धम्मिल्ल ने क्रमशः कुल बत्तीस कन्याओं के साथ विवाह किया था, जिनमें एक बार एक साथ आठ कन्याओं से तथा दूसरी बार एक साथ सोलह कन्याओं से उसका विवाह हुआ था (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ७० और ७१)। उस समय उपहार में युवतियाँ भी दी जाती थीं। तिलवस्तुक सन्निवेश में, नरभक्षी सौदास का वध करके ग्रामीणों को शान्ति पहुँचाने के उपलक्ष्य में, वसुदेव पर प्रसन्न होकर, वहाँ के ग्रामनायकों ने उन्हें माल्यालंकृत रूपवती कन्याएँ १. “ततो सोहणे दिणे राइणा साऽमच्चपुरोहिएण महया इड्डीए तासि कण्णाणं पाणिं गाहिओ। दिण्णं विउलं
पीइदाणं....।" (भद्रमित्रा-सत्यरक्षितालम्भ : पृ.३५५)