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________________ ३३८ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा करके उसके साथ राक्षस विवाह ही किया था । श्यामदत्ता को रथ पर बलात् बैठाकर उसने घोषणा की थी : “जो अपनी नई माँ का दूध पीना चाहता है, वह मेरे सामने आये । इस व तात्पर्य है कि जो सामने आयगा, वह मारा जायगा और वही जब मरकर पुनर्जन्म ग्रहण करेगा, तब उसे पुन: अपनी नई माँ का दूध पीना पड़ेगा। इसी प्रकार, कृष्ण ने भी रिष्टपुर के राजा रुधिर की पुत्री पद्मावती का अपहरण करके स्वयंवर के लिए उपस्थित क्षत्रियों को युद्ध के लिए ललकारा था । कृष्ण ने केवल पद्मावती का ही नहीं, अपितु सिन्धुदेश के राजा मेरु की पुत्री गौरी, गान्धार-जनपद के राजा नग्नजित् की पुत्री गान्धारी, सिंहलद्वीप के राजा हिरण्यलोम की पुत्री लक्षणा, अराक्षरी नगरी के राजा राष्ट्रवर्धन की पुत्री सुसीमा, गगननन्दन नगर के विद्याधरराज जाम्बवान् की पुत्री जाम्बवती तथा विदर्भ-जनपद के कुण्डिनपुर नगर के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी का बलात् अपहरण करके उनके साथ राक्षस विवाह किया था (पीठिका: पृ. ७८-८१)। धूमसिंह के द्वारा रोती-चिल्लाती सुकुमारिका को उठा ले जाना या फिर विवश वसुदत्ता को चोर सोनापति कालदण्ड द्वारा अपनी पटरानी बना लेना या पुनः सोई हुई स्थिति में मानवी का वेगवती के भाई मानसवेग द्वारा अपहरण कर लेना आदि पैशाच विवाह के ही प्रसंग हैं। इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' में स्मृतिकारों द्वारा वर्णित आठों प्रकार की विवाह - विधियाँ से सम्बद्ध अनेक कथाओं का विनियोग हुआ है। यहाँ उपर्युक्त प्रसंगों की चर्चा दिग्दर्शन- मात्र है । प्रचलित रहने की सूचना मिलती है । पति 'वसुदेवहिण्डी' से उस युग में तलाक प्रथा के की अकुलीनता ही तलाक का प्रमुख कारण होती । रत्नपुर के सात्यकि ब्राह्मण ने धरणिजड के शिष्य कपिल की वेदज्ञता पर सन्तुष्ट होकर उसे अपनी पुत्री सत्यभामा दे दी थी; परन्तु कपिल वस्तुतः ब्राह्मणपुत्र नहीं, दासीपुत्र था। संयोगवश उसकी अकुलीनता का पता चलने पर कपिल के प्रति सत्यभामा का स्नेह एकबारगी मन्द पड़ गया । सत्यभामा रत्नपुर के राजा श्रीसेन के समक्ष उपस्थित हुई और उसने निवेदन किया : "मुझे कपिल से मुक्ति दिलवाइए । यह अकुलीन है । यदि आप मेरा परित्राण नहीं करेंगे, तो आपके सामने निश्चय ही मैं अपने प्राण दे दूँगी।” राजा ने कपिल को बुलवाया और उससे कहा : "तुम इस ब्राह्मणी को मुक्त कर दो।" राजा के आदेश से सत्यभामा उसकी रानी के पास उपवासपूर्वक रहने लगी (केतुमतीलम्भ: पृ. ३२० ) । इससे स्पष्ट है कि उस युग में तलाक के इच्छुक किसी भी पुरुष या स्त्री को राजा के समक्ष अपना निवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त था । संघदासगणी ने अपने युग में प्रचलित दहेज तथा उपहार - प्रथा का भी उल्लेख किया है । राजा या सेठ या सार्थवाह अपनी पुत्रियों को अपार धन-वैभव, दास-दासियाँ आदि दहेज में देते थे। राजा वज्रसेन ने, वज्रजंघ से अपनी पुत्री श्रीमती का विवाह हो जाने पर विपुल धन और परिचारिकाएँ दहेज में दी थी (नीलयशालम्भ: पृ. १७६) । वसुदेव के बड़े भाई समुद्रविजय ने अपनी अनुजवधू (वसुदेव की पत्नी तथा राजा रुधिर की पुत्री रोहिणी) के लिए उपहार में चतुर नर्तकों और वादकों की मण्डली से युक्त कुब्ज, वामन, चिलात (किरात) आदि नाट्यकर्ताओं के " जो भे देवाणुप्पिया ! नवियाए माऊए दुद्धं पाउकामो सोमम पुरओ ठाउ त्ति ।” (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ४२ ) २. “सुणंतु सयंवरमागया खत्तिया । दसारकुलकेऊ, वासुदेवो हरइ कुमारिं, जो न सहइ सो पच्छओ लग्गड त्ति ।" (पीठिका: पृ. ७८)
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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