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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
से धूमसिंह की बुरी नीयत से की जानेवाली इशारेबाजी और बातचीत के बारे में कहती थी, किन्तु वह इस बात पर विश्वास नहीं करती था, फिर भी वह मन-ही-मन आशंकित अवश्य रहता था ।
एक दिन अमितगति स्नान आदि से निवृत्त हो चुका था और उसकी पत्नी सुकुमारिका तथा धूमसिंह दोनों मिलकर उसका केश सँवार रहे थे। एक बार अमितगति ने स्वयं अपने हाथ में दर्पण ले लिया, तभी दर्पण में उसने देखा कि उसके पीछे खड़ा धूमसिंह अंजलि बाँधकर सुकुमारिका
प्रार्थना कर रहा है। तब, अमितगति ने रुष्ट होकर धूमसिंह से कहा : "तुम्हारा मित्रभाव अनार्यों के सदृश है। भागो यहाँ से, अन्यथा मैं तुम्हें मार डालूँगा।” शंकालु धूमसिंह अमितगति की बात सेदिककर चला गया और फिर दिखाई नहीं पड़ा। किन्तु, एक बार अमितगति जब अपनी पत्नी के साथ नदी के पुलिन- प्रदेश पर विहार कर रहा था, तभी धूमसिंह लतागृह से निकला और भय से रोती-चिल्लाती सुकुमारिका को उठा ले गया । अन्त में विद्या के बल से सुकुमारिका अमितगति को वापस मिल गई और विद्याधर- श्रेणी के वृद्धों ने विद्याधरों के साथ धूमसिंह की बोलचाल बन्द करा दी।
नीतिकारों ने कहा है कि 'भार्या रूपवती शत्रुः ।' सुन्दरी स्त्रियाँ शत्रुवत् होती हैं। सुकुमारिका की सुन्दरता के कारण ही अमितगति को अशेष क्लेश भोगना पड़ा और उसे उसके चरित्र पर भी अनावश्यक सन्देह होता रहा । 'वसुदेवहिण्डी' में धूमसिंह जैसे और भी कतिपय कामलोलुप दुष्ट पात्र (जैसे, मानसवेग, दण्डवेग, अंगारक, नीलकण्ठ, हेफ्फग आदि) हैं, जो विद्याधर-समाज में परनारीलम्पटता, धृष्टता, हठाग्रहप्रियता आदि अपने अतिरेचक प्रतिगामी गुणों के लिए प्रसिद्धिप्राप्त हैं।
उस युग में कभी-कभी सपत्नियाँ भी चारित्रिक अविश्वास उत्पन्न करके किसी स्त्री के कष्टाकुल जीवन को और अधिक संकट में डाल देती थीं। इस सम्बन्ध में धम्मिल्लहिण्डी के अन्तर्गत चित्रित उज्जयिनीवासी वसुमित्र की पुत्री वसुदत्ता का उदाहरण द्रष्टव्य है (पृ. ५२) । अपनी सास की बात न मानकर आसन्नप्रसवा वसुदत्ता अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ माँ-बाप से मिलने, अपनी ससुराल कौशाम्बी से पीहर उज्जयिनी के लिए चल पड़ी। उसका पति उसी समय प्रवास लौटा और अपने माता-पिता से वसुदत्ता के चले जाने का समाचार पाकर वह भी उसकी खोज में निकल पड़ा । वसुदत्ता, सार्थवाहों का संग छूट जाने के कारण, भटक गई थी, तभी उसका पति उससे मिला। किन्तु रात हो जाने के कारण पति-पत्नी अपने बच्चों के साथ वहीं जंगल में रुक गये । उसी रात में वसुदत्ता ने एक बच्चे को जन्म दिया। उसी समय, मनुष्य-गन्ध पाकर एक बाघ आया और उसके पति को उठा ले गया । पतिशोक में वसुदत्ता मूर्च्छित हो गई और दोनों बच्चे भी भय से बेहोश हो गये । नवजात शिशु भी, माँ का दूध न मिलने के कारण, मर गया। सुबह होश में आने पर वसुदत्ता अपने दोनों बच्चों को लेकर चल पड़ी। तभी घनघोर बरसा हो गई और पहाड़ी नदी में वन्या आ गई। नदी पार करने के क्रम में वह तेज धार में बह गई और उसके दोनों बच्चे भी नदी में डूब गये। नदी में बहती हुई वसुदत्ता नदी - तटवर्त्ती, गिरे हुए पेड़ की शाखा पकड़कर बाहर निकल आई। तभी, नदीतट के जंगलों में रहनेवाले नोरों ने उसे पकड़ लिया और सिंहगुहा नाम की चोरपल्ली में ले आये । तोर सेनापति कालदण्ड ने उसे रुपवती देखकर, अपने अन्तःपुर में ले जाकर अपनी प्रधानमहिषी बना लिया ।
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कालदण्ड की अन्य स्त्रियों को जब उसका शरीर - परिभोग नहीं मिलने लगा, तब वे वसुदत्ता को उससे अलग करने का षड्यन्त्र सोचने लगीं। कालक्रम से वसुदत्ता के एक पुत्र हुआ, जो