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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा अपनी पुत्री सुलसा के साथ प्रमदवन के लतागृह में रहस्यालाप कर रही थी। मन्दोदरी अप्रतिहत भाव से उद्यान में चली गई और निकट में ही छिपकर माँ-बेटी का रहस्यालाप सुनने लगी। ___ माँ रो रही थी और बेटी समझा रही थी : “माँ, मत रोओ। पिता-माता द्वारा दी गई कन्या तो उनसे अवश्य ही बिछुड़ जाती है।" माँ बोली : “तुम्हारे बिछुड़ने के दुःख से मैं नहीं रोती। तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए स्वयंवर का आयोजन किया है, लेकिन तुम मेरे कुलधर्म का उल्लंघन न कर बैठो, इसी का मुझे हार्दिक दुःख है।" बेटी बोली : “माँ, क्यों इस तरह बोलती हो, अमंगल मनाती हो? मेरे द्वारा कुलधर्म के उल्लंघन किये जाने की आशंका तुम्हें कैसे हुई ?" इसपर दिति ने ऋषभदेव की कथा सुनाते हुए अन्त में उससे बताया कि “तुम भरत और बाहुबली के वंश से सम्बद्ध हो । बाहुबली के वंश में तृणपंगु नाम के राजा हुए। मैं (माँ दिति) उन्हीं की बहन हूँ और तुम्हारे पिता अयोधन की बहन सत्ययशा राजा तृणपंगु की महादेवी है। उसके पुत्र का नाम मधुपिंगल है, जो राजा के पद पर प्रतिष्ठित है । और, इन दोनों कुलों की कन्याओं का विवाह परस्पर इन्हीं कुलों में होने की प्रथा निर्धारित की गई है। तुम प्रथम चक्रवर्ती भरत के वंश में उत्पन्न हुई हो। पता नहीं, रूपमोहित होकर तुम किसका वरण कर बैठोगी, इसीलिए मै रोई।" इसपर सुलसा ने अपनी माँ को आश्वस्त करते हुए कहा : “माँ, मैं अपने कुलधर्म को नष्ट नहीं होने दूंगी। मैं स्वयंवर में उपस्थित राजाओं में मधुपिंगल का ही वरण करूँगी।" ____माँ-बेटी के इस रहस्यालाप से तत्कालीन समाज की कई महत्त्वपूर्ण बातें उभरकर सामने आती हैं। उस युग में ममेरे भाई-बहन में विवाह-सम्बन्ध को कुलीन और श्रेष्ठ समझा जाता था। माँ-बाप अपनी लड़की द्वारा स्वयंवर में गलत वर के चुने जाने की आशंका से त्रस्त रहते थे। यद्यफि, उस युग में ऐसी लड़कियाँ भी होती थीं, जो अपने विवेकपूर्ण निश्चय से कुलधर्म की सुरक्षा या परम्परागत प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण रखने की प्रतिश्रुति देती थीं। इसके अतिरिक्त, स्वयंवर की अनिवार्य प्रथा के बावजूद, लड़की के माता-पिता, उसके द्वारा, पूर्वनिश्चित वर के चुने जाने के प्रति ही आग्रहशील रहते थे। ___'वसुदेवहिण्डी' से संकेत मिलता है कि तत्कालीन समाज में सती-प्रथा का भी प्रचलन था। कथा (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १५०) है कि विद्याधर अमितगति की प्रेयसी सुकुमारिका को अपनी अंकशायिनी बनाने के लिए प्रतिनायक धूमसिंह ने वेतालविद्या द्वारा अमितगति के मृत शरीर को दिखलाकर सुकुमारिका से कहा : “यह तुम्हारा स्वामी अमितगति मर गया। इसलिए, अब तुम मुझे ही पति के रूप में वरण करो अथवा जलती हुई आग में प्रवेश करो।” सुकुमारिका ने दृढतापूर्वक कहा : “निश्चय ही, मैं अपने पति अमितगति का अनुसरण करूँगी।” धूमसिंह ने लकड़ी एकत्र करके उसमें आग लगा दी और अमितगति के मायानिर्मित शव को चिता में फेंक दिया। सुकुमारिका अपने पति केशव को आलिंगित करके चिता में बैठ गई । यद्यपि, उसी समय संयोगवश अमितगति आ पहुँचा और उसने जोर से हुंकार किया। धूमसिंह और उसके साथी भाग खड़े हुए। अमितगति ने सुकुमारिका को चिता से बाहर खींच लिया। अमितगति को जीवित देखकर सुकुमारिका विस्मय में पड़ गई।
- 'वसुदेवहिण्डी' से इस बात की भी सूचना मिलती है कि दरिद्र माता-पिता को अधिक लड़कियाँ पैदा होने पर वे प्राय: उपेक्षिता हो जाती थीं। धातकीखण्डद्वीप के पूर्वविदेह-क्षेत्र में