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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा डॉ. कुमार विमल के शब्दों में, महान् कलाकृति में अंकित यथार्थ 'मेटा-फिजिकल' (आधितात्त्विक) होता है और यही उसकी शाश्वती प्रतिष्ठा का रहस्य है।
संघदासगणी द्वारा प्रकल्पित समाज-रचना का चित्र प्रागैतिहासिक है, जिसमें उनकी अपनी नन्दतिक और समाजशास्त्रीय व्याख्या का विनिवेश हुआ है। प्रागैतिहासिक मूल्यों से अनुबद्ध रहने के कारण ही संघदासगणी के सामाजिक चित्रों में प्राचीन आगमिक परम्परा के आद्य बिम्बो का विशेष योग परिलक्षित होता है और इसीलिए उनमें मानव-चेतना का उद्घाटन वैयक्तिक स्तर पर न होकर सामूहिक स्तर पर हुआ है । सामूहिक अवचेतन से सम्बद्ध सामाजिक चित्रों के अंकन के कारण ही उनमें देश, काल और संस्कृतिगत जातीय विरासत सुरक्षित है । अतएव, वसुदेवहिण्डी' जैसी पुराकथा में मिथकों और गगनचारी विद्याधर-विद्याधरियों से सम्बद्ध कथाओं का जो ताना-बाना मिलता है, वह सामूहिक अवचेतन से अश्लिष्ट आद्यबिम्बों का ही प्रतीक-विनियोग है, जो तथ्यात्मक कम और कलात्मक अधिक हैं।
'वसुदेवहिण्डी' (नीलाशयालम्भ : पृ. १६२): में आदिम समाज की सृष्टि का बड़ा मनोरंजक उल्लेख हुआ है। इसमें कथाकार ने श्रमणों की आगमिक परम्परा से प्राप्त समाज-सृष्टि के स्रोत को आदर दिया है, किन्तु अपनी कल्पना को स्वतन्त्र रखकर वर्णनात्मक कलानैपुण्य का प्रदर्शन किया है। मिथुन-काल के छह लाख पूर्व (८४ लाख x ८४ लाख वर्ष) बीतने पर भगवान् ऋषभदेव ने अपनी पत्नी सुमंगला (मिथुन धर्म की सहजात कन्या) के अतिरिक्त, दूसरी पत्नी सुनन्दा (इन्द्र द्वारा प्रदत्त या देवोपनीत) से विवाह करके मिथुन-परम्परा का खण्डन किया। उन्होंने सुमंगला से पहला मिथुन उत्पन्न किया-भरत और ब्राह्मी। इसी प्रकार, सुनन्दा से दूसरा मिथुन उत्पन्न किया बाहुबली और सुन्दरी । सुमंगला ने पुन: उनचास पुत्र-युगलों को जन्म दिया। इस प्रकार, सुखभोग करते हुए ऋषभदेव के बीस लीख पूर्व बीत गये। ___ कालदोष से कुलकरों द्वारा प्रवर्तित दण्डनीति (हाकार, माकार और धिक्कार) की मर्यादा का अतिक्रमण होने लगा। तब, प्रजाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए, प्रजाओं की ही सम्मति से नाभिकुमार (ऋषभदेव के पिता) ने ऋषभदेव को राज्याभिषिक्त करने की सलाह दी। स्वयं इन्द्र ने ऋषभदेव का राज्याभिषेक किया और यक्षराज कुबेर को राजधानी बनाने तथा राजोपयोगी समस्त उपकरण प्रस्तुत करने का आदेश दिया। चूँकि, ऋषभदेव की प्रजाएँ बड़ी विनीत थीं, इसलिए कुबेर-निर्मित राजधानी का नाम विनीता (अयोध्या का नामान्तर) रखा गया। यह राजधानी बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी थी। ___राजा ऋषभदेव ने राज्यशासन की दृष्टि से पहले चार गण बनाये : उग्र, भोग, राजन्य और नाग। आत्मरक्षक (आरक्षक) लोग उग्रगण कहलाये; सामान्य भोगोपभोग करनेवाले भोगगण में रखे गये; ऋषभदेव के समवयस्क मित्र राजन्यवर्ग में परिगणित हुए और कार्यनिवेदक भृत्यस्थानीय लोगों को नागगण में सम्मिलित किया गया। इस प्रकार, गणसहित राजा ऋषभदेव कोशल-जनपद की प्रजा का पालन करने लगे। उन्होंने अपने सौ पुत्रों को सौ जनपद और सौ नगर दे दिये और अपनी दोनों पुत्रियों को भी पुत्रों को सौंप दिया।
१.कला-विवेचन,प्राक्कथन, पृ.८