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________________ वसदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ २८९ जूआघर दुष्टों और चोरों का अड्डा हुआ करता था। धम्मल्लहिण्डी की, अगडदत्त की आत्मकथा (पृ. ३९) में इस बात का उल्लेख है कि अधिकतर दुष्ट और चोर पानागार, द्यूतशाला, हलवाई की दूकान, पाण्डुवस्त्रधारी परिव्राजकों के मठ, रक्ताम्बरधारी भिक्षुओं के कोठे, दासीगृह, आराम, उद्यान, सभा, प्रपा (पनशाला) और शून्य देवकुल में रहते थे। 'वसुदेवहिण्डी' के 'मुख' प्रकरण (पृ. १०६) में सत्यभामापुत्र भानु और जाम्बवतीपुत्र शाम्ब के साथ द्यूतक्रीड़ा की विचित्र कथा आई है। पहले तो भानु के सुग्गे और शाम्ब के मैने में श्लोकपाठ की बाजी लगी, जिसकी राशि एक करोड़ थी। भानु का सुग्गा शलोकपाठ में रुक गया और शाम्ब का मैना निरन्तर श्लोकपाठ करता रहा। इस प्रकार, शाम्ब जीत गया और शर्त में प्राप्त धन को दुर्दान्त गोष्ठिकों और दीनों-अनाथों में बाँट दिया। दूसरी बार गन्धयुक्ति में शाम्ब ने भानु की, दाँव पर लगाई गई दो करोड़ की राशि जीत ली और प्राप्त धन को प्रचण्ड बलशाली गोष्ठिकों और परिजनों में बाँट दिया। तीसरी बार शाम्ब ने भानु से उत्तम आभूषणों के प्रयोग में लगाई गई चार करोड़ की बाजी जीत ली। शाम्ब बड़ा उद्धत था। वह भानु को नाहक परेशान किया करता था। अन्त में, भाइयों के बीच की इस जुएबाजी को रोकने के लिए स्वयं कृष्ण को हस्तक्षेप करना पड़ा। इस द्यूत-प्रसंग से यह स्पष्ट है कि उस समय अतिशय सम्पन्न नागरिकों में प्राय: जूए में जीती गई राशि को गरीबों या परिजनों और गोष्ठिकों में बाँट देने की सामान्य प्रवृत्ति प्रचलित थी। _ 'वसुदेवहिण्डी' के नवें अश्वसेनालम्भ (पृ. २०६) में अश्वद्यूत, अर्थात् घोड़े को दाँव पर रखकर जूआ खेलने का उल्लेख है। जयपुरनिवासी राजा सुबाहु के पुत्र मेघसेन और अभग्नसेन अश्वद्यूत में अपने धन को दाँव पर लगाते थे। बड़ा भाई मेघसेन जो धन जीतता था, उसमें छोटे भाई अभग्नसेन को हिस्सा नहीं देता था, उलटे छोटे भाई के जीते हुए धन को भी हड़प लेता था। प्राचीन भारत के इस अश्वद्यूत से आधुनिक काल में प्रचलित 'हॉर्स रेस' में धन को दाँव पर लगाने की प्रथा की तुलना की जा सकती है। इसी प्रकार, दसवें पुण्ड्रालम्भ (पृ. २१०) में भी एक बहुत ही रोचक द्यूतकथा का उल्लेख हुआ है। एक बार वसुदेव अपने साले अंशुमान् के साथ भद्रिलपुर पहुंचे। वहाँ ब्राह्मण के रूप में परिचित अंशुमान्, अपने बहनोई वसुदेव के लिए एकान्त आवास खोजने के क्रम में खरीद-फरोख्त की विभिन्न वस्तुओं से सजे बाजार की गलियों से गुजर रहा था, तभी एक दूकान पर उसे एक सार्थवाह से भेंट हुई। अंशुमान् सार्थवाह से बातचीत कर रहा था कि बहुत जोरों का हल्ला हुआ। अंशुमान् ने सोचा कि अवश्य कोई हाथी या भैंसा आ गया है, इसीलिए जनसंक्षोभ से यह हल्ला हुआ है। यद्यपि, ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई पड़ा और हल्ला शान्त भी हो गया। क्षणभर के बाद पुन: वैसा ही हल्ला हुआ। पूछने पर सार्थवाह ने बताया कि यहाँ धनी इभ्यपुत्र बहुत मोटी राशि दाँव पर लगाकर जूआ खेलते हैं, इसीलिए जूए में हुई आमदनी के सम्बन्ध में वे हल्ला करते हैं। इसे शुभ शकुन मानकर अंशुमान् द्यूतसभा में चला गया। वहाँ द्वारपाल ने उसे टोका : “यहाँ तो इभ्यपुत्र जूआ खेलते हैं। ब्राह्मणों को यहाँ आने की क्या जरूरत?" अंशुमान् ने कहा : “कुशल व्यक्ति के लिए अति विशिष्ट पुरुष और उसके हस्तलाघव को देखने में कोई विरोध नहीं।" प्रवेश पाकर अंशुमान् सभा के बीच चला गया। वणिक्पुत्रों ने एक करोड़ दाँव पर लगा
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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