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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा वसुदेवहिण्डी' में इस बात का भी उल्लेख है कि गणिकाओं को जिन-भक्ति और दैविक सिद्धि भी प्राप्त रहती थी और वे पूर्वभव के ज्ञान या अवधिज्ञान से भी सम्पन्न होती. थीं। और, यज्ञोत्सव के अवसर पर भी वे नृत्य आदि का प्रदर्शन करती थीं। कामपताका नाम की गणिकापुत्री ने तो अतिशय कठिन सूचीनृत्य, अर्थात् विषदिग्ध सुदयों पर नृत्य भी किया था ( प्रियंगुसुन्दरीलम्भ: पृ. २९३)।
चन्दनपुर नामक नगर के राजा अमोघरिपु की राजगणिका अनंगसेना की पुत्री कामपताका की, रूप, ज्ञान और बुद्धि में, द्वितीयता नहीं थी। वह जिनशासन-प्राप्त रहने के कारण दैविक बल से सम्पन्न थी (तत्रैवः पृ. २९३)। कथा है कि एक दिन जब वह राजभवन से निकल रही थी, तभी राजदरबार का एक धृष्ट सेवक दुर्मुख नामक दास ने उसे छेड़ दिया : “मेरे साथ रहोगी?” जब उसने अनिच्छा प्रकट की, तब दुर्मुख ने उसे अपने कठोर हाथों से पकड़ लिया। इसपर कामपताका बोली : “यदि मैंने जिनशासन प्राप्त किया है, तो इस सत्यवचन से मैं दुर्मुख से छुटकारा पा जाऊँगी।” उसके ऐसा कहने पर, किसी देवी ने देवत्व के प्रभाव से अपने आकारिक विस्तार को
और अधिक विस्तृत कर दास दुर्मुख को एकबारगी रोक लिया। कामपताका निर्विघ्नअपने घर चली गई।
किन्तु, दुर्मुख उसके प्रति द्वेष रखने लगा। उसने पुनः कामपताका को संकट में डाल दिया। इस बार कामपताका जिनवर के अष्टाह्निक की मनौती मानकर कष्टमुक्त हुई। कथा है कि एक बार किसी दिन वटप, शाण्डिल्य, उदकबिन्दु प्रभृति तपस्वी फूल-फल लेकर राजा अमोघरिपु को उपहार देने आये और आश्रम में आयोजित यज्ञ की रक्षा के लिए उन्होंने सहायता माँगी। राजा ने अपने मन्त्रियों से विचार-विमर्श करके अपने पुत्र कुमार चारुचन्द्र को विपुल सैन्यबल और बहुत सारे लोगों के साथ, जिनमें गणिकाएँ भी शामिल थीं, यज्ञ की रक्षा के निमित्त आश्रम भेज दिया।
___ उस यज्ञोत्सव में चित्रसेना, कलिंगसेना, अनंगसेना और कामपताका परस्पर प्रतिस्पर्धा करती हुई नृत्य आदि का प्रदर्शन कर रही थीं। कामपताका की बारी जानकर, परपीडन से सुखानुभूति प्राप्त करनेवाले दास दुर्मुख ने उसे सूचीनृत्य करने का आदेश दिया और विष से बुझी सुइयाँ कामपताका के नृत्यस्थल पर रखवा दीं। कामपताका उसे समझ गई और उसने मनौती की : “यदि मैं इस नृत्य-प्रदर्शन में निस्तार पा गई, तो जिनवर का अष्टाह्निक महामहोत्सव कराऊँगी।” और, उसने उस दिन उपवास का व्रत रखा और उसी के प्रभाव से वह अपने प्रदर्शन में सफल हो गई; क्योंकि विष से बुझी सुइयों को देवी ने नृत्यस्थल से हटा दिया था। ___मानिनी कामपताका का रूप बड़ा तीखा था। उसपर राजकुमार से उपाध्याय तक रीझ जाते थे। यज्ञोत्सव में नृत्य की समाप्ति के बाद कुमार चारुचन्द्र ने अपने सारे आभूषण, छत्र-चामर-सहित, उतारकर, कामपताका को दे दिये और स्वयं निराभरण होकर घर वापस आया और कामरोग से ग्रस्त और विषय-विरक्त रहने लगा। अन्त में, अमोघरिपु ने कामपताका को अपने युवराज चारुचन्द्र के लिए दे दिया। कामपताका पहले स्वामिदत्त नामक परदेशी वणिक् पर रीझ गई थी। किन्तु, परदेशी वणिक् विरागमागी निकला। उलटे, उसने कामपताका और उसकी माँ अनंगसेना को श्रमणधर्म और श्रावकधर्म का उपदेश देकर श्राविका बना दिया। तभी से कामपताका जिनभक्त हो गई थी। मनौती के अनुसार, उसने विविध आयोजनों के साथ जिनवरेन्द्र का उत्सव मनाया १.रूवेण आगमेण य, बुद्धीय य तत्थ चंदणपुरम्मि ।
कामपडागासरिसी, अण्णा कण्णा उ णाऽऽसी य ॥ -प्रियंगुसुन्दरीलम्भ पृ. २९३