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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा
'वसुदेवहिण्डी' में प्राप्त उल्लेख से यह स्पष्ट होता है कि इस चित्रकला की रचना नदी - तट पर बैठकर कमल के पत्ते से ही की जाती थी। क्योंकि, तीसरे गन्धर्वदत्तालम्भ (पृ. १३४) में ठीक उपरिवत् प्रसंग उपलब्ध होता है : चारुदत्त और उसके साथियों ने नदी में उतरकर पैर धोये फिर, वे विभिन्न क्रीडाओं में रम गये। कमल के पत्तों को लेकर पत्रच्छेद्य बनाने लगे। इसके बाद वे सभी नदी के दूसरे स्रोत के निकट चले गये । वहाँ गोमुख ने कमल का पत्ता लिया और अंजलि के आकार का दोना बनाकर पानी के प्रवाह में छोड़ दिया ।
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संघदासगणी ने ताम्रपत्र, चीवर और परदे पर चित्रांकन का उल्लेख किया है । ताम्रपत्र और चीवर - चित्र की कथा पाँचवें सोमश्रीलम्भ (पृ. १८९) में बड़ी रोचकता के साथ वर्णित है । सुन्दरी सुलसा को प्राप्त करने के मार्ग में राजा सगर का एक प्रतिद्वन्द्वी था मधुपिंगलं । उसे नीचा दिखाने के लिए राजा सगर के पुरोहित ने एक ताम्रपत्र पर राजा के शरीर की आकृति तथा उसके प्रशस्त लक्षण अंकित कराये और मधुपिंगल के लक्षणहीन होने की बात लिखवा दी। इसके बाद उस ताम्रपत्र को त्रिफला के रस में भिगोकर काला कर दिया, ताकि प्राचीन जान पड़े, फिर उसे ताम्रकलश में रखकर नगर के बाहर दूर्वामयी भूमि में गाड़ दिया। उसी भूमि पर पुष्करिणी बनाने की राजाज्ञा हुई और चक्रवर्ती राजा सगर के अधीनस्थ राजाओं ने जब भूमि की खुदाई की, तब वह ताम्रकलश निकला। उसमें किसी कंक ऋषि का हवाला देकर राजा सगर को सुलक्षण बताया गया था और
पिंग को लक्षणही । इस बात की जानकारी जब उपस्थित राजाओं को हुई, तब सबने मिलकर सुलसा की स्वयंवर - सभा में मधुपिंगल की खूब भर्त्सना की; क्योंकि वह प्राचीन ऋषि द्वारा लक्षणहीन बताया गया था । मधुपिंगल लज्जित होकर स्वयंवर - सभा से बाहर चला गया और सुलसा ने राजा सगर का वरण कर लिया ।
छब्बीसवें ललित श्रीलम्भ ३६२) में स्वयं वसुदेव द्वारा चीवर पर चित्र अंकित करने की कथा आई है, जिसमें उन्होंने विवाह के पूर्व ललित श्री के पास मृगचरित के व्याज से विरहदग्ध आत्मचरित चित्रित करके भिजवाया है। कलाविदुषी गणिका ललितश्री के पास प्रेषित चीवर - चित्र में वसुदेव ने जो कलावस्तु अंकित की थी, वह इस प्रकार है : मृगयूथ से भ्रष्ट अकेला कनकपृष्ठ मृग चारों ओर अपनी दृष्टि दौड़ा रहा है और मृगी को न देखकर उदास भाव से रोते हुए उसने अपने को जंगली आग के बीच डाल दिया है। उस चित्र में वसुदेव ने अपने को वियोग- विनष्ट दर्शनीय (दयनीय) मृगचरित को देखता हुआ चित्रित किया । उक्त चित्र इतना मार्मिक और कलात्मक था कि ललितश्री ने उस चित्र को फैलाकर ध्याननिश्चल आँखों से देर तक देखा, आँसू से उसके गाल और पयोधर भींग गये ।
कपड़े पर चित्र अंकित करने का एक और प्रसंग 'वसुदेवहिण्डी' में उपलब्ध होता है। चौथे नीलयशालम्भ (पृ. १७३) की कथा है कि निर्नामिका द्वारा उसके पूर्वभव की कथा सुनकर उसकी धाई ने उसके प्रियतम ललितांगदेव खोज के लिए पूरे पूर्वभव - चरित को कपड़े पर चित्रित किया था। धाई और निर्नामिका ने मिलकर विभिन्न रंगों की पट्टियों से बड़ा पट (फलक) तैयार किया। पहले उसमें नन्दिग्राम का चित्र बनाया गया, फिर अम्बरतिलक पर्वत पर अशोक वृक्ष के नीचे आसीन आचार्य युगन्धर को चित्रित किया गया और फिर उनकी वन्दना में आये देवमिथुन को दिखाया गया । ईशानकल्प में श्रीप्रभ विमान को देवमिथुन के साथ चित्रित किया गया। इसके