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वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ
२३७ प्रस्तुत प्रसंग से स्पष्ट है कि उस युग में अस्त्रयुद्ध अधम युद्ध माना जाता था और मुष्टियुद्ध तथा दृष्टियुद्ध क्रमशः मध्यम और उत्तम । उत्तम और मध्यम युद्ध में हारने के बाद ही अधम अस्त्रयुद्ध का सहारा लिया जाता था तथा भावुक एवं नियमपालक योद्धा कभी-कभी युद्धभूमि में ही विरक्त होकर हिंसा के व्यापार से अपने को अलग कर लेते थे। प्राचीन इतिहास में भी ऐसी घटना का विवरण प्राप्य है। उडीसा के प्रसिद्ध कलिंग-यद्ध में भीषण नरसंहारकारी अन्याय-युद्ध देखकर सम्राट अशोक ने अहिंसावादी बौद्धधर्म, अन्य ऐतिहासिक मत से जैनधर्म स्वीकार कर लिया था। युद्ध में पुराप्रचलित शस्त्रहिंसा के विरोध की इसी भावना से, आधुनिक राजनीतिक युग में, निःशस्त्रीकरण की नीति या पंचशील या सह-अस्तित्व का सिद्धान्त विकसित हुआ है।
युद्धविद्या में निष्णात चरितनायक वसुदेव ने मुष्टियुद्ध या मल्लयुद्ध भी किया था। छठे मित्रश्री-धनश्रीलम्भ (पृ. १९६) की कथा है कि भूलते-भटकते वसुदेव सूर्यास्त के समय जब तिलवस्तु नाम के सनिवेश में पहुँचे, तब नरभक्षी राक्षस से नित्य आतंकित रहनेवाले वहाँ के नागरिकों ने अपने द्वार बन्द कर लिये। नागरिकों को निर्दय जानकर वसुदेव सन्निवेश से थोड़ी दूर पर स्थित मन्दिर में चले गये और दरवाजा बन्द करके सो गये। आधी रात में एक पुरुष वहाँ आया और वह ऊँची आवाज में कहने लगा : “ऐ मुसाफिर ! दरवाजा खोलो, नहीं तो किवाड़ तोड़कर भीतर घुस जाऊँगा और तुम्हें मार डालूँगा।" उसकी आवाज से वसुदेव जग गये और उस पुरुष से बोले : “मुझे जगाओ मत, अन्यथा तुम्हें शिक्षा देनी पड़ेगी।" तब वह पुरुष वसुदेव पर रुष्ट हो उठा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। वसुदेव ने दरवाजा खोल दिया। तभी एक विकराल पुरुष उनके सामने आ खड़ा हआ। वह हाथ में लट्ठ लिये हए था। शरीर विशाल और नंगा था। नख-केश बड़े-बड़े और दाढ़ी बढ़ी हुई। दाँत बड़े भयंकर । उसके शरीर से कच्चे नरमांस और चरबी की गन्ध आ रही थी। अपने ऊँचे-ऊँचे कन्धों से वह और अधिक भयावह दिखाई पड़ रहा था। अपने घने केशों को झटकारते हए उसने वसुदेव पर लाठी चलाई, लेकिन उसके प्रहार को विफल करते हुए वसुदेव ने उसकी गरदन पकड़ ली। उसके बाद दोनों में मुष्टियुद्ध होने लगा।
वसुदेव जब उस नरभक्षी को पीटते, तब वह जोर से चिल्ला उठता। वह बार-बार पीछे हटता और फिर आक्रमण करता। वसुदेव भी उसके शरीर के स्पर्श से बचते हुए अपनी मुट्ठियों
और हथेलियों से उसके वार को रोकते रहे। तिलवस्तु के नागरिक उस नरभक्षी पुरुष की तीखी चिल्लाहट से जग गये और ढोल बजाते हुए आपस में कलकल करने लगे। इसी बीच उस पुरुष ने वसुदेव को पकड़ लिया। तभी, पराजित करने के खयाल से वसुदेव ने उस पुरुष को अपनी दोनों भुजाओं से कसकर दबाया। वह जोरों से चिल्ला उठा और लहू उगलते हुए निष्प्राण होकर गिर पड़ा।
धनुर्विद्याविशारदों ने इस प्रकार की मल्लविद्या को वीरोचित कृत्यों में सबसे हीन प्रकार का माना है। मल्लविद्या में किसी बाह्य साधन का प्रयोग नहीं किया जा सकता, अपितु अपने शरीर से सम्बद्ध हाथ-पाँव आदि अवयवों की सहायता से ही सब काम करना पड़ता है। वर्तमान भारत में इसे कुश्ती कहते हैं। इसी प्रकार, जापान में इसे 'जिजुट्सु' ( = युयुत्सु) तथा यूरोपीय देशों में घुसेबाजी (बॉक्सिग) कहा जाता है। यद्यपि वसुदेव का उपर्युक्त मुष्टियुद्ध विशुद्ध मल्लयुद्ध