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________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ २३५ हुआ है। फिर भी, उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे कथा में रसविघात की स्थिति नहीं आने देते, किन्तु यह बात तो प्रकट हो ही जाती है कि उन्होंने 'वसुदेवहिण्डी' की कथा को आचार्य - शैली में उपन्यस्त की है । निश्चय ही, वह कथाकार से अधिक कथाचार्य थे । आचार्य संघदासगणी ने न केवल युद्ध के आयुधों का वैशिष् ट्य-विवेचन किया है, अपितु युद्ध में उसके प्रयोग की विधि और युद्धनीति पर भी प्रकाश डाला है, साथ ही युद्धकला की भी विशद-गम्भीर और आधिकारिक अवतारणा की है । नवम अश्वसेनालम्भ (पृ. २०६ - २०७) में संघदासगणी ने युद्ध करने की प्राचीन विधि का विशदता से उल्लेख किया है। युद्धकलाविशारद वसुदेव के प्रेक्षकत्व में अभग्नसेन और मेघसेन राजाओं की सेना नियमानुसार युद्धभूमि में एक दूसरे से भिड़ गई - रथी के साथ रथी, घुड़सवार के साथ घुड़सवार, पदाति के साथ पदाति, हस्त्यारोही के साथ हस्त्यारोही और योद्धा के साथ योद्धा लड़ने लगे। दोनों सेनाओं में एक साथ तूर्य- निनाद और कलकल की ध्वनि गूँज उठी । "मैं तुम्हारा विनाश करता हूँ, क्षणभर ठहरो " इस प्रकार बोलते हुए योद्धाओं की पुकार की आवाज चारों ओर फैल गई । अपनी बाणविद्या के गुणों को दिखलाते हुए वीर पुरुषों ने बाणों से आसमान को ढक दिया । मेघसेन की सेना बड़े वेग से अभग्नसेन की सेना को परास्त करने लगी । तीक्ष्ण खड्ग, शक्ति, भाले और बाणों से आहत अभग्नसेन के योद्धा पीड़ित हो उठे। मेघसेन की सेना का दबाव जब अधिक बड़ गया, तब अभग्नसेन युद्ध-विमुख होकर अपने नगर की ओर लौट चला। मेघ की तरह गरजता हुआ मेघसेन आगे बढ़ आया और अभग्नसेन के निराश तथा दुःखी सैनिकों को रौंदते हुए अभग्नसेन के सन्निवेश शालगुह में घुसने लगा । अभग्नसेन वसुदेव का ससुर था। अपने ससुर की सेना की पस्ती देख उन्होंने अपने सारथी साले अंशुमान् से कहा : " शीघ्र रथ के घोड़ों को हाँको । मैं मेघसेन के घमण्ड को चूर करूँगा ।" वसुदेव को सम्मुख आया देख मेघसेन के योद्धा, यथार्थ को जाने विना, उनपर अन्धाधुन्ध आयुधों की वर्षा करने लगे। वसुदेव ने अपने क्षिप्रकारी हस्तकौशल से उन योद्धाओं के अस्त्रों को विफल कर दिया। कुछ सैनिकों को बन्दी बना लिया गया और कुछ रथहीन कर दिये गये। इसके बाद अंशुमान् बड़ी कुशलता से, वसुदेव के निर्देश के अनुसार, रथ को मेघसेन के निकट ले गया। मेघसेन कालमेघ की तरह बाण बरसाता हुआ आया । वसुदेव ने वर्षा को रोकनेवाले नैर्ऋत्य पवन की भाँति बाण चलाकर उसकी बाणवर्षा को रोक दिया । शरवृष्टि में विफल होने पर भी जब मेघसेन ने युद्ध की तत्परता नहीं छोड़ी, तब वसुदेव ने 'सम्बन्धी' जानकर उसके शरीर की रक्षा करते हुए धनुष, ध्वज और सारथी को नष्ट कर दिया और घोड़े को भी पीड़ित किया। फिर उन्होंने उसे चेतावनी दी : " हथियार डाल दो, वरना तुम्हें मार डालूँगा।” मेघसेन किंकर्तव्यविमूढ हो उठा। अंशुमान् ने उसे पकड़ लिया और अपने रथ पर ला छोड़ा । मेघसेन परकटे पक्षी की भाँति अविचल खड़ा रहा। उसकी वह हालत देखकर उसके विनाशकारी योद्धा पीछे भाग चले। इधर अभग्नसेन के सैनिकों को बल मिला। उन्होंने मेघसेन
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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