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वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ
१८७ रविकरपरिलीढपुंडरीयक्खणो, सुनासो, सुरगोवग-सिल-प्पवालरत्ताधरोट्टो, पण्णगनिल्लालियग्गकिसलयसवण्णजीहो, कमलब्भेतरनिवेसियकुंदमुकुलमालासरिच्छदसणो, कुंडलविलिहिज्जरमणिज्जसवणो, महाहणू, तिलेहापरिगयकंबुकंधरो, पवरमणिसिलातलोवमविसालवच्छो, सुसिलिट्ठपउट्ठसंधि, पुरफलिहदीहरभुजो, उवचियसातच्चलक्खणोक्किण्णपाणिकुवलो, मणहरतररोमराइरंजियकरग्गगेज्झमझदेसो, पविकसमाणपउमाहनाभी, आइण्णतुरगवट्टियकडी, करिकरसम्मथिरतरोरू णिगूढजाणू, एणयजंघो, ससंखचक्काऽऽयवत्त-लंछियकोमलकुम्भोवमाणचलणो, दप्पियवरवसहललियगमणो, सुइसुभगमहत्थरिभितवाणी, सयलमहीतलपालणारिहो।" (पद्मालम्भ : पृ. २०४)
इस प्रकार के शुभ अंगलक्षणों से युक्त वसुदेव का विवाह पद्मावती से हुआ था। पद्मावती भी प्रशस्त अंगलक्षणों से देदीप्यमान थी। लक्षणशास्त्रियों ने उसके अंग-प्रत्यंग को प्रशस्त बताया था। प्रतिहारी ने वसुदेव से, उसके अंगलक्षणों को बताते हुए, इस प्रकार कहा था :
"देव! सुणह अम्हं सामिणो अभग्गसेणस्स दुहिया पउमा नाम पउमवणवियरणसमूसिया सिरीविव रूवस्सिणी, लक्खणपाढगपसंसियमुह-नयण-नासा-हो?-पयोहर-करकिसलय-मज्झादेसजहणोरुजुयल-जंघा-चलणकमलारविंदा, सरस्सई विव परममहुरवयणा, गतीय हंसगमणहासिणी। (तत्रैव)
इस प्रकार, वसुदेवजी की सभी पलियाँ और अन्य प्रमुख पात्रियाँ भी प्रशस्त अंगलक्षणों से सम्पन्न थीं। कहना न होगा कि संघदासगणी ने आंगिक शोभा के वर्णन में अंगविद्या के अनुसार सभी लक्षणों का विशद विवरण उपन्यस्त किया है।
अगडदत्त की प्रेयसी पत्नी श्यामदत्ता 'सव्वंगोवंगपसत्य-अवितण्हपेच्छणिज्जरूवा' (धम्मिल्लहिण्डी) थी। वसन्ततिलका का मनुहार करते समय धम्मिल्ल को उसने अपने जिस पैर से प्रहार किया था, वह भी प्रशस्त लक्षणों से युक्त था। संघदासगणी ने अपने वर्णन-वैभव के साथ उस सुन्दर पैर का विनियोग इस प्रकार किया है :
“अणुपुव्वसुजायअंगुलीदलेणं, कमलदलकोमलेणं, रत्तासोयथवयसन्निभेणं, चंगालत्तयरसोल्लकोववससंजायसेएणं चलणेणं आहओ।" (तत्रैव)
इसी प्रकार, धम्मिल्ल ने नागघर में नागदत्ता को भी प्रशस्त अंगलक्षणों से विभूषित देखा था (तत्रैव) रुक्मिणी भी अपने प्रशस्त अंगलक्षणों के कारण गुणों का आलय (पीठिका) मानी जाती थी। प्रद्युम्न के अंगलक्षणों को देखकर विद्याधरी कनकमाला की धारणा बनी थी कि विद्याधर-लोक में प्रद्युम्न के समान दूसरा पुरुष नहीं है (पीठिका : पृ. ९२) । वसुदेव की पत्नी श्यामली भी 'लक्खणपाढगपसंसियसुपइट्ठियसभावरत्ततला' थी । (श्यामलीलम्भ)
ऋषभदेवस्वामी का शरीर तो सौभाग्यशाली अंगलक्षणों का प्रतिमान था। संघदासगणी ने उनके अंग की शोभा के वर्णन को इस प्रकार विस्तार दिया है :
"उसभसामी पत्तजोव्वणो य छत्तसरिससिरो, पयाहिणावत्तकसिणसिरोओ, सकलगहणायगमणोहरवयणो, आयतभुमयाजुयलो, पुंडरियवियसियनयणो, उज्जुयवयणमंडणणासावंसो, सिलप्पवालकोमलाऽहरो, धवल-विमलदसणपंती, चउरंगुलप्पमाणकंबुगीवो, पुरफलिहदीहबाहू लक्खणजालंकियपाणी, सिरिवच्छंकियविसालवच्छो, गयवज्जमझो, अकोसपउमनाभी, सुबद्ध