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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा कहते हैं, अंगों के आकार-प्रकार, स्फुरण आदि महानिमित्तों को 'अंग' कहा जाता है और स्वर के अनुरूप फलाफल के सूचक महानिमित्त 'स्वर' कहे गये हैं; अंगों के संस्थान या संरचना (रूप, रंग, बनावट आदि) की शुभता और अशुभता के सूचक महानिमित्तों को 'लक्षण' कहा गया है और अंगों के मस्सा, तिल आदि चिह्नों के फलाफल की सूचना देनेवाले महानिमित्तों को 'व्यंजन' की संज्ञा दी गई है। इन आठों महानिमित्तों पर अलग-अलग आठ निमित्तशास्त्रों की रचनाएँ भी उपलब्ध होती हैं। 'वसुदेवहिण्डी' में कहीं कथागत घटनाओं के माध्यम से और कहीं सिर्फ नाम लेकर आठों महानिमित्तों का उल्लेख हुआ है। आयुर्वेद के आठ अंगों की तरह यह अष्टांगमहानिमित्त ही ज्योतिषशास्त्र का मेरुदण्ड है। ऊपर, 'वसुदेवहिण्डी' में प्राप्त अष्टांगमहानिमित्त के कतिपय अंगों पर प्रकाश डाला जा चुका है। यहाँ दो-एक अंगलक्षणों पर, जिसे अंगविद्या या सामुद्रिकशास्त्र भी कहते हैं, प्रकाश-निक्षेप किया जा रहा है। अंगलक्षण के ही अन्तर्गत करलक्षण या हस्तरेखाओं का अध्ययन भी सन्निहित है । यद्यपि, संघदासगणी ने हस्तरेखा की प्रत्यक्ष चर्चा कहीं नहीं की है। किन्तु, कतिपय पात्रों के अंगलक्षणों के निरूपण में उनके हाथ-पैर में अंकित शुभसूचक चिह्नों की चर्चा अवश्य हुई है।
अंगलक्षण या अंगविद्या : ___ अंगों की चेष्टा या चिह्नों को देखकर शुभाशुभ कहने की विद्या को 'अंगविद्या' कहते हैं। सामुद्रिकशास्त्र इसी का पर्याय है। 'बृहत्संहिता' के इक्यावनवें अध्याय में इस विद्या का पूर्ण विवरण उल्लिखित है । संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' के प्रमुख पात्रों के शुभाशुभ अंगलक्षणों का अंकन किया है। राजगृह के सार्थवाह की पली धारिणी के 'जम्बू' नामक सुलक्षण और वर्चस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ था। चरितनायक वसुदेव स्वयं आकृत्या और प्रकृत्या सर्वश्रेष्ठ पुरुष थे। उनका
अंग-प्रत्यंग प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न था। उनके हाथों में स्थिरतासूचक चिह्न उत्कीर्ण थे और पैरों में शंख, चक्र और आतपत्र का लांछन था।
वसुदेव जब दक्षिण देश में हिण्डन कर रहे थे, तभी एक मध्यम वय के मनुष्य ने, जो बारीक और सफेद कपड़ा पहने हुए था तथा अपने मनोगत भावों को अंगुलियों पर गिन रहा था, कृतांजलि होकर उनसे कहा था : “स्वामी ! शास्त्रप्रमाण के आधार पर, शरीराकृति से आपकी महानुभावता की सूचना मिलती है।" उस मनुष्य ने उनके अंगलक्षण इस प्रकार बताये थे :
"सिरं छत्तागारं किरीडभायणं तुझं, मुहं सकलससिमंडलच्छविहरं, सेयपुंडरीकोपमाणि लोयणाणि, बाहू भुयगभोगसच्छमा, वच्छत्थलं लच्छिसन्निधानं पुरवरकवाडसरिच्छं, वज्जसण्णिहो मज्झो, कमलकोससरिसा णाही, कडी मिगपत्थिवावहासिणी, ऊरू गयकलहमुद्दिससणसण्णिभप्पभासा, जंघा कुरुविंदवत्तसंट्ठियाओ, लक्खणालयं च चलणजुयलं । सयलमहिमंडलपालणारिह उत्तमाणं बुद्धीओ वि उत्तमा चेव भवंति।" (भद्रमित्रा और सत्यरक्षिता-लम्भ : पृ. ३५३)
संघदासगणी ने अन्यत्र भी वसुदेव के शारीरिक लक्षणों का वर्णन इस प्रकार किया है :
"जणट्ठिीपरिभुज्जमाणसोभो, मउडभायणायवत्तसंठिउत्तमंगो, छच्चलणंजणसवण्णकुंचिय-पयाहिणावत्तणिद्धसिरओ, सारदगहवतिसम्मत्तसोम्मतरवयणचंदो, चंदद्धोवमनिडालपट्टो,